For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-33 (विषय: नीड़ की ओर)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 32 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव  में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-33
विषय: "नीड़ की ओर"
अवधि : 29-12-2017 से 30-12-2017 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
10. गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 9871

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

संवेदनशील कथा के लिये बधाई आद० मनन कुमार सिंह जी ।कितना तकलीफदायक होता है जब निर्दोष लोग कुत्सित राजनीति का शिकार हो जाते है ।

बहुत-बहुत आभार आ. नीता कसार जी. उम्मीद करता हूँ कि आपकी यह टिप्पणी मेरी लघुकथा के लिए ही होगी. सादर धन्यवाद.

आदरणीय महेंद्र कुमार जी,आपने बड़े ही सवेंदनशील विषय को उठाकर प्रदत्त विषय से ला जोड़ा है। गुलाबी परिकथा का धूल धूसरित हो दिखाई न पड़ना,अपने नीड़ से परमानेंट बिछोह का बिम्ब मालूम पड़ा। यह समस्या वैसे तो विश्व्यापी हो चुकी है,तथापि अपने देश के इर्द- गिर्द घटे घटनाक्रम की भी अनायास ही याद ताजा कर रही है। सादर बधाई स्वीकारें।

हार्दिक आभार आदरणीय सतविन्द्र जी। बहुत-बहुत शुक्रिया। सादर। 

अंतहीन उड़ान (लघुकथा)

सूरज ढलने को है। मैं अकेला चौपाल में बैठा उन दिनों के याद में खोया हूँ जब शाम होते ही यहाँ जमघट लग जाती थी। पर आज सिवाय कुछ छुट्टा पशुयों के, कोई नजर नहीं आ रहा है। मैं सुनहरे अतीत को वक़्त के हाथों बर्बाद होते देख वक़्त को कोस ही रहा था कि वक़्त ने आवाज दी-
"अरे गाँव भाई! आप उदास लग रहे हो। सब ख़ैरियत तो है?"
मैं वक़्त की ओर रुख करते हुए बोला - "क्या बताऊँ वक़्त भाई! अपने स्वावलंबी स्वरूप को नष्ट होते इन्ही आँखो से देख रहा हूँ। मैं उदास इस बात से हूँ कि भौतिकवादी विकास किस तरह जड़ों से काट कर हर किसी को परजीवी और बेकार बना रहा है।"
"विकास तो अच्छा ही होता है। और विकास तो समय की माँग है। फिर तुझे विकास से ऐतराज क्यों है गाँव भाई?" वक़्त ने तल्ख होकर प्रश्न दागा।
मैनें भी उसी स्वर में अपनी बात कह दी- "विकास से ऐतराज नहीं है वक़्त भाई! पर विकास के साथ गिरते मानवीय मूल्यों और सामाजिकता को एकाकीपन में बदलते देख मन खिन्न है। एक छप्पर उठाने को जहाँ पूरा गाँव चल पड़ता था आज वहीं जनाजा उठाने के लिए भी बमुश्किल से कंधे मिल पा रहे हैं।"
"परिवर्तन तो सत्य सनातन नियम है गाँव भाई। और तुम इससे वाकिफ़ भी हो, फिर? ।" वक़्त उसी बेरुखी से बोला।
मैं लम्बी साँस खिंचते हुए बोला- "हाँ वक़्त भाई! यह परिवर्तन ही तो है। पहले जहाँ पूरा गाँव बाग बगीचे से घिरा रहता था आज वहाँ एक भी पेड़ दिखाई नहीं दे रहा है। जहाँ दूध की नदियाँ बहती थीं, आज पावडर का दूध बाजार से खरीदा जा रहा है। जिस गाँव में बच्चे बाजरे की रोटी शौक से खाते थे आज पिज्जा बर्गर खा रहे हैं।"
"यह तो लोगों की जीवनशैली में सुधार का नतीजा है, इस बात को क्यों नहीं कह रहे हो। आज लोगों का जीवन पहले से कई गुना बेहतर हो गया है।" वक़्त ने तर्क दिया।
मैं वक़्त की बात बीच में काटते हुए बोल पड़ा- "पर लोगों ने खुद को मशीन के अधीन कर लिया है, आप इसे क्यों नहीं कहते? अब तो संबंध भी फोन पर निभाये जा रहे हैं। त्योहार, लोक संस्कृति, लौकिक रीति रिवाज और परम्पराएं सब बेमानी हो गईं सी लगती हैं।"
वक़्त मुझे समझाते हुए बोला- "केवल नकारात्मक पहलू ही क्यों देख रहे हो गाँव भाई? भले यह समय बाजारवाद का है पर इसने लाखों लोगों को रोजी-रोटी भी दिया है। इसी को नई दुनिया कहते हैं।"
मैं चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक हँसी लिए बोल पड़ा- ‘‘सच में यह नई दुनिया है वक़्त भाई जो सिर्फ लाभ कमाना चाहती है। सम्बन्ध बनावटी तथ बाजारू हो गए हैं। कभी नंगे और भूखे पेट चहकने वाला गाँव, विदेशी जूतों की आभा देख अचानक कुंठित और अतृप्त नजर आ रहा है। नौजवानों की नई पीढ़ी दारू, पान, बीड़ी और पाउच की दीवानी हो गयी’’
वक़्त ने भी मुझपर तंज कसा- "क्या गाँव भाई! आप भी दकियानूस और लकीर के फकीर सी बात करते हो। आज का युवा पहले से ज्यादा शिक्षित और समझदार है।"
मैं झल्लाते हुए बोला-"हाँ, क्यों नहीं। माँ-बाप ने पढ़ाया-लिखाया, बेटा पत्नी के साथ बाहर जाकर बस गया। उसके पास बच्चों और पत्नी के लिए पैसा है पर माँ-बाप के लिए न पैसा है और न वक़्त। बूढ़ी आँखे इंतिजार करते-करते दम तोड़ दे रही हैं। क्या इसी को आप शिक्षित और समझदार बोलते हो?"
वक़्त इस बार मेरे विपरीत कोई तर्क न दे सका। वह बोला-" हाँ गाँव भाई! मैं भी तुमसे सहमत हूँ। शाम के समय तो पंछी भी अपने नीड़ की ओर रुख कर देते हैं। पर यह इंसान! यह तो ऊँची उड़ान के चक्कर मे वास्तविक रास्ता ही भटक गया है।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

आदरनीय सुरेन्द्र नाथ जी आप ने गाँव और वक्त के माध्यम से बहुत अच्छी बात कही है. रचना बहुत बढ़िया बन पड़ी है. बधाई आप को इस सामायिक विषय को नए ढंग से उठाने के लिए. 

आद0 ओमप्रकाश क्षत्रिय जी सादर अभिवादन। मेरे सृजन को आपसे मान्यता मिली। लेखन सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार आपका।

बहुत बढ़िया और सचाई को दर्शाती रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको

आद0 विनय कुमार जी सादर अभिवादन। आपको लघुकथा पसन्द आयी, लेखन सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार

जनाब सुरेंद्र नाथ साहिब, प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

आद0 तस्दीक अहमद खान जी सादर अभिवादन। लघुकथा पसन्द करने और हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार।

आ० सुरेन्द्र जी , आपने जिस विषय को उठाया  और जैसा उसका निर्वाह किया  उसके लिए आपको बधाई  .मैंने  इस मानवीकरण और कहन  का पूरा आनंद लिया . पर अंत में  जब आपने कथा को नीद की ओर से से जोड़ा तो  स्वाभाविकता  बाधित सी हो गयी . ऐसा लगा जैसे विषयांतर हो गया . नी\ड  की और में एक उत्कंठा  एक ललक और तड़प  का भाव है . सारी उद्यमता के बाद पक्षी शाम को अपनी नीड की ओर उन्मुख होते हैं .- नीड  -- एक ठिकाना , एक विश्राम स्थल . एक बार फिर आपकी वैचारिक संपदा को बधाई . सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"मेघ, उमस, जल, दोपहर, सूरज, छाया, धूप। रक्ताले जी आपने, दोहे रचे अनूप।।  नए अर्थ में दोपहर,…"
9 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"काल करे बेहाल सा, व्याकुल नीर समीर।मोम रोम सबसे लिखी, इस गर्मी की पीर।। वन को काट उचाट मन, पांव…"
27 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"श्रम अपना भगवान है, जीवटता है ईश प्यास बुझाएँगे सदा, उठा गर्व से शीश// चित्र के आलोक में एक श्रमिक…"
29 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी।सार्थक सुंदर दोहावली की हार्दिक बधाई। छिपन छिपाई खेलता,सूूरज मेघों संग। गर्मी…"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आभार लक्ष्मण भाई"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"रचना पर अपनी उपस्थिति और उपयोगी सुझाव देने के लिए अनेक आभार आदरणीय"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या बात है मिथिलेश भाई, बहुत रोचक दोहे। चेहरे पर बरबस एक मुस्कान आ गई। जेठ ने तो मज़ा बाँध दिया। अब…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुरूप सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजयभाई जी।सार्थक सुंदर दोहावली की हार्दिक बधाई।चंदा के लिए मामा सर्व मान्य है लेकिन…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, इस दोहावली में कुछ नये शब्दों का संयोजन और उसमें निहित भावों को समझने के बाद…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. 12 दोहे के तीसरे चरण को इस प्रकार किया है देखिएगा - प्यासे सूरज के लिए, सागर बदली भेज।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को बहुत सुंदर वर्णन दोहों में किया है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service