आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय, कथानक बहुत अच्छा है एक जिज्ञासा है, क्या संवादों के बिना लिखी गयी कथा लघुकथा श्रेणी में आती है ?
आदरणीय विजय जोशी जी, इस रचना में एक बड़ी कहानी का पूरा परिदृश्य उपस्थित होता है, जो लघु कथा के फॉर्मेट में फिट नहीं बैठ रहा है| आप आ. सुनील जी के सुझावों पर अवश्य ध्यान दें| इस सत्र में सहभागिता के लिए और आपकी रचना के लिए विशेष साधुवाद |
आ. विजय जी, लघुकथा का कथानक हमारे समाज की एक बहुत बड़ी समस्या है. इस विषय पर आपने अच्छी रचना प्रस्तुत की है जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है. कुछ बातें साझा करना चाहूँगा :
1. //राधा को यह समझने या समझाने में दस वर्ष बीत गये, कि वैवाहिक जीवन का उद्देश्य केवल संतानोत्पत्ति ही है।// "या समझाने" का प्रयोग मुझे अनावश्यक लगा.
2. //कौन सा दिन ऐसा बीता होगा// ऐसी ही अन्य टंकण त्रुटियाँ भी हैं.
3. //पति, परिवार, पड़ोसी,पनिहारिन, परिवेश, व पक्षधर ही नहीं, परायों// अनुप्रास का प्रयोग गद्य के प्रभाव को बढ़ा देता है लेकिन जब उसका प्रयोग स्वाभाविक तौर पर हुआ हो. यहाँ मुझे ऐसा प्रतीत नहीं हुआ.
4. //कहीं गुमनाम हो गई।// "में कहीं गुम हो गई।"
5. //चिन्मय अपने विवाह के उसी उद्देश्य को लेकर दूसरे नये बंधन में बंधा, और उसका उद्देश्य तो पूरा न हो सका ।
चिन्मय का बैंक बेलेन्स व जीवन दोनों खाली हो गये।// "चिन्मय अपने विवाह के उसी उद्देश्य को लेकर एक नये बंधन में बंधा मगर वह फिर से पूरा नहीं हुआ। उसका बैंक बेलेन्स व जीवन दोनों खाली हो गये।"
6. लघुकथा में कालखंड दोष है.
सादर.
उजाला दे दूंगी
"माँ, आज साहब के बंगले में इतनी भीड क्यों है?" रोहित बाबु के बंगले के आउट हाउस में अपनी माँ के साथ रहने वाली छोटी बच्ची रानी ने अपनी माँ अहिल्या से पूछा था।
अहिल्या जानती थी कि साहब के यहां नवरात्र में दुर्गा जी की पूजा होती है। आज उसी की पूर्णाहुति पर कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। उसके बाद दक्षिणा के रूप में उपहार भी दिया जाता है।
"वहां माँ दुर्गा जी की पूजा हो रही है।"
"उससे क्या होता है?"
"उससे दुर्गा जी सद्बुद्धि देती हैं। और सद्बुद्धि से जीवन में उजाला आ जाता है। उसके प्रकाश में जीवन जीने से कोई भय नहीं होता है।"
"माँ, हम भी दुर्गा जी की पूजा क्यों नहीं करते?"
"करती हूं न। जहां दुर्गा जी की पूजा होती है, वहां की सफाई तो मैं ही रोज करती हूं। हमारी यही पूजा है।"
"तो फिर कन्या को बुलाकर खिला भी देंगे और दक्षिणा भी देंगें।"
"मैं तो रोज खिलाती हुँ कन्या को।"
"मैने तो किसी को आते हुए नहीं देखा।"
"तुम जो मेरी कन्या हो।"
"तुम दक्षिणा क्या दोगी?"
"थोडा सा उजाला दे दूंगी।"
"तुम्हारी यही बात मेरी समझ में नहीं आती।"
अहिल्या अपनी रानी को गले लगा लेती है।
(मौलिक व अप्रकाशित )
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, मेरी लघु कथा को ध्यान से पढ़ने के लिए आभार | आपकी सकारात्मक टिप्पणी और उसमें छुपी सलाहियत को मैंने संज्ञान में ले लिया है| आगे से अवश्य ध्यान रखूँगा|
आदरणीय सुनील जी, मेरी लघु कथा को ध्यान से पढ़ने के लिए और सराहना के लिए ह्रदय तल से आभार |
आदरणीय ब्रिजेन्द्र नाथ मिश्र जी बहुत ही सरस भाषा में लिखी गई रचना में बहुत उम्दा सन्देश दिया गया है. बधाई आप को इस बेहतरीन रचना के लिए.
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