For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पक्का घड़ा ( लघुकथा )

गाँव वालों के बीच इन दिनों एक ही चर्चा चल रही थी और वो थी सुखिया के  बेटे का आतंकवादी बन जाना  | सुखिया एक सीधा सादा कुम्हार था पर उसके हाथ के बने घड़े सुन्दर और पक्के होते थे | आस पास के गाँव वाले भी उसके पास घड़े खरीदने आते थे |

लोगों को जब उनके बेटे के बारे में पता चला तो वे सब सकते में आ गए ।


किसीने कहा , " घोर कलजुग है भैया , किसीका भरोसा नहीं । "


कोई बोला ," इसमें तो मुझे उस सुखिया कुम्हार की ही गलती दिखे है , माटी के घड़े तो बना दिए पर खुद के बेटे को ......छी छी... लानत है ऐसे बाप पर जो अपने बच्चों की परवरिश नहीं कर सका । उसकी जगह मैं होता तो अपने बेटे को खुद ही मार देता । "


सुखिया सब की बातों को सुन रहा था , उसकी आँखों से उसकी लाचारी साफ़ नज़र आ रही थी । 


इस चर्चा में गाँव के मास्टरजी भी थे । उन्होंने कहा , भाइयों आपकी बातों से मैं सहमत हूँ पर मिटटी के घड़ों की यह भी सच्चाई है कि मिटटी से आकार तो कोई भी दे सकता है पर जब तक घड़ा आग में तपे नहीं तब तक वह कच्चा ही रह है जाता है और पकना तो उसीको पड़ता है । उस तपिश को सहन कर ले तो बाहर आकर किसीके घर में काम आ ही जायेगा वरना उसका टूट कर बिखरना तो तय है । "


"मास्टर जी आप बात तो सही कह रहे हो , तपना तो खुद को ही पड़ता है , कुछ ऐसा ही हुआ है सुखिया के बेटे के साथ , और वह टूट गया । काश रुक जाता कुछ देर ।"


सुखिया अपने चाक पर बैठ गया , उसके पास उसका छोटा बेटा था जो उसका हाथ बंटा रहा था ।


सुखिया ने उससे कहा , "सही से पकाइयों वरना घड़ा टूट जायेगा  | तू ने अभी तक भट्टी  पे काम नहीं किया है | "


बेटे ने पिता के आशय को समझते हुए  जवाब दिया ," बाबा मैंने भट्टी पे काम करते हुए आपको देखा है आप न घबराये, घड़े सही से ही पकाऊंगा  "


सुखिया के सामने अब उसके बनाये घड़े पक रहे थे ।

मौलिक एवं अप्रकाशित |

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nita Kasar on July 25, 2017 at 9:04pm
बहुत उम्दा कथा है,कितनी कुशलता से आपने घड़े को प्रतीक बना पिता को बेटे के भविष्य को लेकर निश्चिंत कर दिया है ।बधाई तो बनती है कल्पना बहना ।
Comment by Manisha Saxena on July 25, 2017 at 11:24am

कल्पनाजी ,लघुकथा बहुत ही बढ़िया ,मानकों पर खरी उतरती हुई ,बधाई |

Comment by Ravi Prabhakar on July 24, 2017 at 1:11pm

बहुत बढ़ीया लघुकथा आदरणीय कल्‍पना जी । कथानक व ट्रीटमेंट दोनों जर्बदस्‍त । विशेषकर अंतिम पंक्‍ितयां / बाबा मैंने भट्टी पे काम करते हुए आपको देखा है आप न घबराये, घड़े सही से ही पकाऊंगा  / बहुत ही गहन संदेश प्रेषित कर रही हैं । सुखिया के सामने अब उसके बनाये घड़े पक रहे थे । लघुकथा के अंत में आई यह पंक्‍ित  लघुकथा का सार है । शीर्षक चयन भी बेहतरीन । सादर शुभकामनाएं ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 23, 2017 at 6:59pm
मुहतर्मा कल्पना साहिबा ,संदेश देती सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by Samar kabeer on July 23, 2017 at 5:59pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें और गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।
Comment by Mohammed Arif on July 23, 2017 at 4:29pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, आतंकवाद की पृष्ठभूमि पर लिखी गई औसत दर्ज़े की लघुकथा । कथानक में और कसावट की आवश्यकता है । कथानक और उभरने का अवसर मिलना था जो नहीं मिला । वर्तनीगत अशुद्धियाँ भी आसानी से देखी जा सकती है ।।बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 23, 2017 at 11:07am
बेहतरीन कथानक पर बढ़िया प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय कल्पना भट्ट जी। अंतिम पांच-सात पंक्तियों के स्थान पर कुछ बेहतरीन विचारोत्तेजक समापन भी हो सकता है आपकी सधी हुई लेखनी से। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"//दोज़ख़ पुल्लिंग शब्द है//... जी नहीं, 'दोज़ख़' (मुअन्नस) स्त्रीलिंग है।  //जिन्न…"
33 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, बहतर है।"
48 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार…"
54 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आशा है कि…"
59 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की  टिप्पणी क़ाबिले ग़ौर…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये हेर शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ है, फिर भी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह ख़ूब, अमित जी की टिप्पणी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी आदरणीय यही कि जिस मुक़द्दमे का इतना चर्चा था उसमें हारने वाले को सज़ा क्या हुई उसका भी चर्चा…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। सुझावों के बाद यह और बेहतर हो गयी है। हार्दिक बधाई…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"वक़्त बदला 2122 बिका ईमाँ 12 22 × यहाँ 12 चाहिए  चेतन 22"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service