For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: कैसे कह दूँ मैं अलविदा तुझसे

2122 1212 22
कैसे कह दूँ मैं अलविदा तुझसे ।
चैन आया है हर दफ़ा तुझसे ।।

इक सुलगती हुई सी खामोसी ।
इक फ़साना लिखा मिला तुझसे ।।

वो इशारा था आँख का तेरे ।
दिल था पागल छला गया तुझसे ।।

भूल जाती मेरा तसव्वुर भी ।
क्यूँ हुई रात भर दुआ तुझसे ।।

बेखुदी में जो इश्क कर बैठा ।
उम्र भर बस वही जला तुझसे ।।

कर लूँ कैसे यकीन वादों पर ।
कोई वादा कहाँ निभा तुझसे ।।

कुछ रक़ीबों से गुफ्तगूं करके ।
तीर वाज़िब नहीं चला तुझसे ।।

रूठ जाने की है अदा ज़ालिम ।
और हासिल ही क्या हुआ तुझसे ।।

कत्ल करने का सिलसिला जारी ।
आशिको ने सितम कहा तुझसे ।।

खूब इल्जाम लग रहा लेकिन ।
चाँद पूछा हरिक रज़ा तुझसे ।।

उस से छुपना भी गैर मुमकिन है ।
ख्वाब में रोज मिल रहा तुझसे ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2017 at 9:46am

आदरनीय नवीन भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये दिल से बधाइयाँ आपको । बाक़ी बातें आदरनीय समर भाई कह ही चुके हैं , खयाल कीजियेगा ।

Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 9:30pm
अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय नवीन जी। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। आदरणीय समर सर की बातों पर ध्यान दें। सादर।
Comment by Naveen Mani Tripathi on March 8, 2017 at 7:16pm
आ0 आरिफ साहब विशेष आभार सर ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on March 8, 2017 at 7:15pm
आदरणीय कबीर सर नमन । अत्यंत कीमती इस्लाह हेतु तहे दिल से शुक्रिया सर ।
Comment by Samar kabeer on March 8, 2017 at 4:31pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
ग़ज़ल के कई अशआर रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं कर सके,मतले का ऊला मिसरा देखिये:-
'कैसे कह दूँ में अलविदा तुझसे'
यहां अलविदा के साथ 'तुझको'कहना पड़ेगा,और आपकी बात यूँ कह सकते हैं:-
"कैसे हो जाऊं मैं जुदा तुझसे"
दूसरे शैर के ऊला में 'खामोसी'को "ख़ामोशी"कर लें ।
तीसरे शैर के ऊला में 'तेरे'को "तेरी"करें,आँख स्त्रीलिंग है ।
सातवें शैर में 'गुफ्तगुं' को "गुफ़्तुगू'करें,और सानी मिसरे में 'वाजिब'शब्द भर्ती का है ।
नवां शैर मुह्मिल है ।
Comment by Mohammed Arif on March 8, 2017 at 10:25am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बेहतीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ । कहीं-कहीं अनुस्वार और नुक्ते की ग़लियाँ नज़र आ रही है । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"यह ग़ज़ल विवशता के भाव से आरंभ होकर आशा, व्यंग्य, क्षोभ और अंत में गहन निराशा तक की यात्रा समाज में…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी आदरणीय सम्मानित तिलक राज जी आपकी बात से मैं तो सहमत हूँ पर आपका मंच ही उसके विपरीत है 100 वें…"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इसी विश्व के महान मंच के महान से भी महान सदस्य 100 वें आयोजन में वही सब शब्द प्रयोग करते नज़र आ…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मैं यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपको यह कहने की आवश्यकता क् पड़ी कि ''इस मंच पर मौजूद सभी…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर अभिवादन बेहतरीन ग़ज़ल हुई है वाह्ह्हह्ह्ह्ह! शैर दर शैर दाद हाज़िर है मतला…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन उम्द: ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई शैर दर शैर स्वीकार करें!…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन!आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने वक़्त…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर नमस्कार आपका बहुत धन्यवाद आपने समय दिया ग़ज़ल तक आए और मेरा हौसला…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service