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ग़ज़ल अब्रे जहराब से बरसा है ये कैसा पानी

वज़्न - 2122 1122 1122 22/112

अब्रे जहराब से बरसा है ये कैसा पानी ।
भर गया मुल्क की आँखों में हया का पानी ।।

मिट ही जाए न कहीं शाख जे एन यू की अब ।
आइये साफ़ करें मिल के ये गन्दा पानी।।

मन्नतें उन की हैं हो जाएं वतन के टुकड़े ।
सर के ऊपर से निकल जाए न खारा पानी ।।

कुछ हैं जयचन्द सुख़नवर जो खुशामद में लगे ।
बेच बैठे हैं जो इमानो कलम का पानी ।।

आलिमों का है ये तालीम ख़ता कौन कहे ।
ख़ास साजिश के तहत हद से गुजारा पानी ।।

जल गए अम्नो सुकूँ ख़ाक चमन कर बैठे ।
देखिये शह्र में अब आग लगाता पानी ।।

हो रहे पाक परस्ती में वो मशहूर बहुत ।
ले रहे मौज से जो देश में दाना पानी ।।

तालिबानों का हक़ीक़त से भला क्या रिश्ता ।
भेजते अक्ल सरेआम वो काला पानी ।।

हर तरफ धुंध है छाया है घना सा कुहरा ।
खौफ ख़ातिर है यहां देर से ठहरा पानी ।।

बुनते साजिश हैं ये गद्दार बगावत के लिए ।
तल्ख़ अरमान पे लोगों ने बिखेरा पानी ।।

--

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 9:06pm
इस अच्छी सामयिक ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय नवीन जी। गुणीजनों की बातों का ध्यान रखें। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 8, 2017 at 8:12pm

आदरणीय नवीन भाई , बहुत अच्छी सामयिक ग़ज़ल हुई है .. हार्दिक बधाइयाँ । आदरनीय समर भाई जी की सुझाई बातों का ख्याल कीजियेगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 8, 2017 at 7:20pm
आ0 नीलेश भाई सादर आभार । आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2017 at 8:16am

ग़ज़ल पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा लेकिन इतना भर ज़रूर कहूँगा कि अगर लिखने का हुनर है तो कुछ constructive और बियॉन्ड टाइम लिखा जाये. ऐसे सामयिक विषय जब कल पुराने हो जायेंगे तो हर शेर के साथ रेफरेंस भी देना पड़ेगा नई पीढ़ी को ... 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2017 at 8:16am

ग़ज़ल पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा लेकिन इतना भर ज़रूर कहूँगा कि अगर लिखने का हुनर है तो कुछ constructive और बियॉन्ड टाइम लिखा जाये. ऐसे सामयिक विषय जब कल पुराने हो जायेंगे तो हर शेर के साथ रेफरेंस भी देना पड़ेगा नई पीढ़ी को ... 

Comment by रामबली गुप्ता on March 8, 2017 at 7:15am
भाई नवीन मणि जी बहुत ही सुंदर प्रयास हुआ है ग़ज़ल पर। दिल से बधाई लीजिये। आद समर भाई साहब की बातों पर गौर करियेगा। सादर
Comment by रामबली गुप्ता on March 8, 2017 at 7:15am
भाई नवीन मणि जी बहुत ही सुंदर प्रयास हुआ है ग़ज़ल पर। दिल से बधाई लीजिये। आद समर भाई साहब की बातों पर गौर करियेगा। सादर
Comment by Samar kabeer on March 7, 2017 at 3:36pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,इसके लिये बधाई स्वीकार करें ।
मतले के ऊला मिसरे में'अंजुमन'शब्द भर्ती का है,और सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये 'मुल्क की' ।
तीसरे शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये 'बज़्म में' ।
चौथे शैर के सानी मिसरे में'इमां' शब्द ग़लत है,सही शब्द है "ईमां"।
'आलिमों का है ये तालीम ख़ता कौन कहे'
इस मिसरे में 'तालीम'शब्द स्त्रीलिंग है, इसलिये ये मिसरा यूँ कीजिये:-
"आलिमों की है ये तालीम ख़ता कौन कहे" ।

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