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बाज आ बस्तियाँ जलाने से

बह्र 2122 1212 22

लाख कोशिश करो ज़माने से
राज छिपता नही छिपाने से।।

सिर्फ कहने से कुछ नही होता
रिश्ता होता है बस निभाने से।।

हारते हम लड़ाइयाँ अक्सर
पीठ मैदान में दिखाने से।।

हाथ माँ का अगर तेरे सर हो
तू मिटेगा नहीं मिटाने से।।

मै बिखरता हूँ कितने टुकडो में
हौसला यार टूट जाने से।।

जिनकी आँखों पे हो बँधी पट्टी
क्या मिले आइना दिखाने से।।

तेरा घर भी इन्ही में है आबाद
बाज आ बस्तियां जलाने से।।

हाथ का मैल 'नाथ' ये पैसा
फिर भी फुर्सत किसे कमाने से।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Mahendra Kumar on December 29, 2016 at 7:46pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on December 29, 2016 at 7:08am
आद0 डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपको लिखा पसंद आया, इसके लिए आभार।
यूँही उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन करते रहें। सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:15pm

बढ़िया मतला और गजल भी . सादर .

Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 6:51pm
आदरणीय मिथिलेश जी सादर प्रणाम संग प्रतिक्रिया के लिए आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 6:50pm
आदरणीय श्याम नारायण जी प्रणाम संग आभार
Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 6:49pm
आदरणीय गुरुवर समर कबीर साहब प्रणाम, आपको गजल पसंद आई, लिखना सफल हुआ। आभार आपका

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 6:36pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on December 28, 2016 at 5:41pm
क्या बात है , हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on December 28, 2016 at 5:11pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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