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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 72 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-73

विषय - "प्रदूषण"

आयोजन की अवधि- 11 नवम्बर 2016, दिन शुक्रवार से 12 नवम्बर 2016, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र दो ही प्रविष्टियाँ दे सकेंगे. 
  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 11 नवम्बर 2016, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय समर कबीर जी, आपने प्रदत्त विषय पर शानदार ग़ज़ल कही है शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, बहुत दिनों बाद आपको मंच पर देख कर कितनी ख़ुशी हुई है,बता नहीं सकता ।
ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

आदरणीय समर जी, उम्दा ग़ज़ल कही. रही की पुनरावृत्ति हो गई है. कुछ कठिन शब्दों के अर्थ भी दे दें तो हमारे लिए लाभदायक होगा. जैसे आलूद , तुफैल 

जनाब अरुण कुमार निगम जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
ग़ज़ल में सिर्फ़ मतले में ये क़ैद होती है कि एक क़ाफ़िया दोनों मिसरों में न आये इसके अलावा क़ाफ़िया आप कई बार इस्तेमाल कर सकते हैं,इस लिये 'रही'शब्द का इस्तेमाल दोबारा किया है,लेकिन भाव अलग हैं और ये दोष नहीं माना जाता ।
आलूद का अर्थ है लुथड़ी हुई ।
तुफ़ैल का अर्थ है कारण ।

आ. समर कबीर जी. बढिया पेशकश हुई है , इस हेतु बधाई. कुछ शब्द जैसे "ज़ह्र आलूद,तुफ़ैल,सब्ज़ा" का अर्थ बता दे तो और आसानी से गजल की गहराई तक पहूँच सकू.

मोहतरमा नयना(आरती)कानिटकर जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
ज़ह्र आलूद-ज़ह्र में लुथड़ी हुई ।
तुफ़ैल-कारण ।
सब्ज़ा ज़ार-हरयाली ।

हर तरफ़ फूल से महकते थे
मेरी आँखों में घूमती है फ़ज़ा...वाह साहिब सुन्दर ग़ज़ल ...बधाई स्वीकार करें

जनाब मुनीश तन्हा साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
'फ़ज़ा' को बाख़ूबी परिभाषित व चित्रित करती बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब समर कबीर साहब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

 

प्राणवायु के रूप मे, हवा सुलभ सर्वत्र ।

जहरीली फिर क्यों हुई, दिल्ली सह अन्यत्र ।१।

दिल्ली की आबो-हवा, पर ना हो इतबार ।   

जहाँ साँस लेना हुआ, जन जन को दुश्वार ।२।

धुंध धुएँ की दोहरी, दिल्ली ओढ़े सौर ।

दम जहँ घुटता जीव का, नहीं सुरक्षित ठौर ।३।  

जुटे परस्पर होड़ में, महानगर से गाँव ।

अतः आज पर्यावरण, लगा देश का दाँव ।४। 

बढे प्रदूषण ना कभी, रखिये इसका ध्यान ।

इसे रोक यदि ना सके, खतरे मे फिर जान ।५।

दिल्ली के इस दर्द को, समझ आज इंसान ।

वरना यह अभिशाप कल, भोगे सकल जहान ।६।  

                      -    मौलिक व अप्रकाशित 

दोहों की यह श्रृंखला,देती अच्छा ज्ञान
दिल्ली सहित अनेक की,खतरे में है जान।

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