For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-जन-जन में' मैं सद्भाव का संचार करूंगा।-रामबली गुप्ता

वह्र-2212 2212 221 122

जन-जन में' मैं सद्भाव का संचार करूँगा।
सबके दिलों पे प्यार से अधिकार करूँगा।।

नित द्वेष औ' दुर्भाव को कर दूर हृदय से।
मैं प्यार से झंकृत दिलों के तार करूँगा।।

जातीयता औ' धर्म के हर भेद मिटा मैं।
सबसे सदा समभाव का व्यवहार करूँगा।।

निज राष्ट्र के रक्षार्थ रण में शीश खुशी से।
बलिदान क्या इक बार मैं सौ बार करूँगा।।

प्रति पग अहिंसा-प्रेम औ' सन्मार्ग पे चल कर।
मैं विश्व में सुख-शांति का विस्तार करूँगा।।

मां भारती की आन के रक्षार्थ समर में।
मैं काल बन के शत्रु का संहार करूँगा।।

स्वाधीनता-सम्मान के कीमत पे' कभी भी।
जीना न मैं जग मे 'बली' स्वीकार करूँगा।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामबली गुप्ता on September 14, 2016 at 8:47pm
आपका बहुत बहुत आभार आद0 सौरभ सर। औ और पे को लेकर काफी सशंकित हो गया था। अनुस्वार वाली टंकण त्रुटि को अभी सुधार करता हूँ। पुनः आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2016 at 8:33pm

भाई रामबली गुप्ता जी, आप अनुस्वार और चन्द्रविन्दु के भेद को मेटने पर क्यों तुल गये हैं ? यह तो लापरवाही है भाई. करूँगा को करूंगा लिखना किसी तौर पर सचेत अभ्यासकर्मियों को शोभा नहीं देता.  

रचनाकर्म के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2016 at 8:23pm

//खडी बोली हिन्दी में औ, पे का प्रयोग नहीं होता //

यह उक्ति कहाँ से उद्धृत की गयी है ? दूसरे, खड़ी बोली का वह कौन-सा स्वरूप है जिसमें इसके प्रति आग्रह है ? छान्दसिक रचनाओं में तत्सम शब्दों के प्रति एक आग्रह अवश्य होता है, जो एक मान्यता के वशीभूत ही है, न कि किसी विधान के धरातल पर स्थापित सत्य. अन्यथा, हिन्दी भाषा का जो प्रचलित स्वरूप सर्वमान्य हुआ है, उसमें सहयोगी भाषाओं के शब्द उदारता से स्वीकार्य होते हैं. 
न हम आज सितारेहिन्द साहब का अनुसरण कर रहे हैं न लल्लू लाल जी का. बल्कि भारतेन्दु के बताये मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं जिसे महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने तार्किकता के खाद-पानी से पोषित-पल्ल्वित किया है. 

सादर

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 8:07pm
वाह आदरणीय श्री रामबली गुप्ता जी बहुत ही सुन्दर देशभक्ति के मोती पिरोए हैं आपने सुन्दर रचना में। बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by रामबली गुप्ता on September 14, 2016 at 3:17pm
आद0 समर भाई जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका हृदय से आभार
Comment by रामबली गुप्ता on September 14, 2016 at 3:16pm
ग़ज़ल पसंद करने एवं बहुमूल्य सुझाव हेतु हृदय से आभार आद0 गोपाल नारायन जी। सादर
Comment by रामबली गुप्ता on September 14, 2016 at 3:14pm
आद0 भाई बृजेश कुमार जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका हृदय से आभार
Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 10:50pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,बहुत उम्दा जज़्बाती ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 13, 2016 at 8:40pm

आ० राम बली जी - आपकी हिन्दी गजल बड़ी मोहक है . आपसे एक उम्मीद मैं  और करता हूँ कि खडी  बोली हिन्दी में औ, पे का प्रयोग नहीं होता ,अगर इस पर आपने अधिकार कर लिया तो फिर तो बल्ले बल्ले .

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 13, 2016 at 8:24pm

बहुत ही सुंदर अनुपम अनुकरणीय ग़ज़ल आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service