For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कीमत ए बेपरवाही (लघुकथा)/सतविन्द्र कुमार

कीमत ए बेपरवाही
-----------------------
हंसी ख़ुशी जीवन बीत रहा था।वे दोनों और उनका पांच साल का बच्चा,जो उनकी ख़ुशी का सबसे बड़ा कारण था और ज़रिया भी।
आज जब वह कपड़े धोने के बाद कमरे में गई तो बच्चे को फर्श पर अचेत हाल में देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।उसे तो उसने टीवी पर कार्टून देखते हुए छोड़ा था।
पर क्या हुआ? न कोई आवाज ,न कोई हलचल।मुँह में झाग और शरीर नीला।शायद कोई दौरा था।
शंकित मन से पति को फोन मिलाया,"सुनिए....चीनू को पता नहीं ...क्या हुआ है?वो....कुछ बोल्ल्ल...?"
बोलते-बोलते बिलख पड़ी।
"देखो तुमम् चिंता न करो।उसे रिक्शा से ,डॉ के पास ले जाने के लिए निकलो।मैं भी पहुँचता हूँ।",हौंसला देने का बहाना करता हुआ खुद को भी सम्भाल रहा था।
जल्दी से वह भी पहुँच गया।डॉ को दिखाने से पहले ही बच्चा अंतिम सांस ले चुका था।देखते ही डॉ ने उसकी मृत्यु की पुष्टि कर दी।डॉ के अनुसार लक्षण शरीर में जहर के होने के थे।
डॉ बोला,"शायद किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया है।"

उनकी खुशियों को ग्रहण लग गया।वह बुझी-बुझी रहने लगी।
टीवी ट्रॉली को झाड़ते हुए अचानक उसका हाथ एक चॉकलेट के पैकेट जैसी गत्ते की डिब्बी पर पड़ा।जिस पर लिखा था बच्चों की पहुँच से दूर रखें।उस पर छपे चित्र को देखते ही वह सिहर उठी।
उसका हृदय चित्कार उठा और आँखों से मलाली पानी की धार फूट पड़ी।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 28, 2016 at 10:20pm
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी सादर हार्दिक आभार प्रोत्साहन के लिए।
Comment by pratibha pande on July 28, 2016 at 10:17pm

साधारण सी दिखने वाली घटना अपने साथ कितने सन्देश ले आई है ,   हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सतविंदर जी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 28, 2016 at 10:06pm
आप से अनुमोदन पाकर अभिभूत हूँ आदरणीय रवि प्रभाकर सर।प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार।शीर्षक के विषय में भी मार्गदर्शन चाहता हूँ आदरणीय!
Comment by Ravi Prabhakar on July 28, 2016 at 8:23pm

इस कथा की विशेषता इसका साधारण सा कथानक है। अक्‍सर कथानक हमारे आस पास बिखरे पड़े रहते है जिन्‍हें हम देख/पहचान नहीं पाते। लेखक ऐसे ही क्षणों अथवा घटनाओं का पकड़ता है। इस हेतु आप बधाई के पात्र हो। जरूरी नहीं है कि हर लघुकथा करंट ही मारती हो या उसमें आसमानी बिजली जैसी कौंध ही हो। साधारणता में से विलक्ष्‍णता ढूंढना ही असल में लघुकथा है। शीर्षक के इतर यह लघुकथा बहुत ही बढ़ीया है। सादर शुभकामनाएं

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 28, 2016 at 6:21am
प्रोत्साहन के लिए हारदिक् आभार आदरणीय विजय शंकर जी। नमन
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 28, 2016 at 2:07am
बहुत कुछ सिखाती है यह लघु - कथा। न केवल बच्चों वरन सभी के लिए परवाह करना अनिवार्य होता है , बधाई आदरणीय सतविंदर सिंह जी , सादर।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 27, 2016 at 10:06pm
आदरणीया राजेश दीदी प्रयास को समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए आभार संग नमन।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 27, 2016 at 10:04pm
अनुमोदन,प्रोत्साहन एवम् मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय sheikh shahzad usmani जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 9:12pm

न जाने कितने ऐसे बेपरवाही के उदाहरण भरे पड़े हैं फिर अपनी किस्मत का रोना रोते हैं ऐसे लोग ..बहुत अच्छे अलग विषय पर लिखा है आपने आद० सतविन्द्र भैय्या लोगों में इस बात को लेकर  जागरूकता आनी चाहिए| अच्छी लघुकथा बहुत बहुत बधाई 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 27, 2016 at 5:41pm
शीर्षक इस तरह होना था- // क़ीमत-ए-बेपरवाही//

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service