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पुण्य-तिथि .... (विजय निकोर)

पुण्य-तिथि

(२७ वर्ष उपरान्त भी लगता है ... माँ अभी गई हैं, अभी लौट आएँगी)

माँ ...

रा्तों में उलझे ख्यालों के भंवर में, या
रंगीले रहस्यमय रेखाचित्रों की ओट में
कभी चुप-सी चाँदनी की किरणों में
श्रद्धा के द्वार पर धुली आकृतिओं में
सरल निडर असीम आत्मीय आकृति
माँ की खिलखिलाती मुसकाती छवि

समृतिओं के दरख़तों की सुकुमार छायाएँ
स्नेह की धूप का उष्मापूरित चुम्बन
मेरे कंधे पर तुम्हारा स्नेहिल हाथ
कितनी बार जा चुका हूँ माँ
तुम्हारे साथ इस लोक से परलोक
लौट आया हूँ परलोक से इस लोक

मेरे जीवन के अन्धेरों में घुल-घुल 
कभी खुशिओं की रोशनी से मिल-जुल 
ले जाती रही हो तुम मुझको अविरल
संभ्रांति और दुष्ट स्वभावों से दूर
असीम समस्याओं की सरहदों के पार
सत्य से एक और प्रखर सत्य की ओर

पर लगता है आज अचानक दरअसल
सत्य से बनाई इमारत गिर-सी गई है
आस्था के आकाश में चटक गई बिजली
बरस रही है चिनगारियाँ अविश्वास की
भावनाओं के सागर में तट को मिटा रही
झकझोरती, व्याकुल भागती-सी लहरें ...

रेत के सफ़े पर ज़िन्दगी के फ़लसफ़े लिखती
ख्यालों की लौटती डूबती-उभरती लहरें
ऐसे में अक्षमताओं से पराजित
उदास आक्रान्त क्षणों में 
विपरीत विचारों के भयानक भंवर में
गोते खा रहा मैं .... असहाय

माँ~ !

----------

 विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1078

Comment

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Comment by vijay nikore on May 23, 2016 at 3:50pm

//भावुक कर गई आपकी रचना,माँ की यद् आगई,माँ को समर्पित इस रचना के लिये दिल से ढेरों बधाई //

रचना को इस प्रकार मान देने के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय समर जी।

Comment by vijay nikore on May 23, 2016 at 3:48pm

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय सतविन्द्र जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2016 at 1:19pm

आदरणीय विजय निकोर सर, इस मार्मिक भावाभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई.

स्मृतियों के दरख्तों की सुकुमार छायाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 9, 2016 at 6:10pm

भावुक करती आपकी ये रचना ..शब्द नहीं हैं तारीफ़ को ..आज कल  अधिक व्यस्त होने के कारण नेट पर आना नहीं हो पा रहा देरी से पढने का खेद है |बहुत बहुत बधाई 

Comment by रामबली गुप्ता on May 9, 2016 at 6:03pm
हृदय की गहराइयों तक पहुँचने वाली इस रचना के लिए हृदयतल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय विजय निकोरे जी।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 9, 2016 at 9:20am
वाह विजय निकोर जी बहुत ही सुन्दर रचना बधाई
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 9, 2016 at 3:58am
अतिसुन्दर , बधाई आदरणीय विजय निकोर जी , सादर।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 8, 2016 at 9:20pm

नि:शब्द हूँ आदरणीय | नमन | 

Comment by Samar kabeer on May 8, 2016 at 5:43pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,भावुक कर गई आपकी रचना,माँ की यद् आगई,माँ को समर्पित इस रचना के लिये दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 8, 2016 at 2:45pm
बहुत सुंदर एवम् भावपूर्ण मनोद्गार! सादर नमन।

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