For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं तुझ से मिलने आऊंगा

मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
हर रात हौले से जब बंद करेगी तू अपनी आँखें
तेरे सपनो के द्वार इक दस्तक मैं दे जाऊँगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा



लाख लगा ले तू पहरा अपने महलों की द्वारों पे
नज़र उठा के देख ज़रा लिखा है मैने नाम तेरा चाँद सितारों मे
जानता हूँ हर रोज़ जाती है तू फूलों के बागों मे
बालों मे लगाती है इक गजरा पिरोके उनको धागों मे
इक दिन बनके फूल तेरे गजरे का तुझ ही को महकाऊँगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा


जानता हूँ हर शाम तू अंजान अंधेरे से डरने लगती है
जला दिए अपने घर मे उजाला करने लगती है
अंधेरों से तो मेरा बड़ा पुराना नाता है
मुझे तेरे आँसू पोंछकर तुझे हंसाना आता है
तेरी जिंदगी रोशन करने की आरजू अब भी दिल मे बाकी है
इक दिन तेरी जिंदगी रोशन करने दियों की जगह मैं खुद ही जलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा

आए हैं कई तूफान इस चमन मे अपने जोरों से
आवाज़ सुनाई देती है उनकी अब भी सूखे दरखतों के शॉरों से
इक तूफान ने इक ग़लती की, इक बीज को मिट्टी मे मिला दिया
अंजाने मे ही सही इक नया वृक्ष खिला दिया
याद रखना तू की मैं पल्लव हूँ नाता है मेरा पेड़ों से
इस वासन्ती वेला मे मैं फिर से खिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा

Views: 618

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dheeraj on April 26, 2011 at 4:11pm

जानता हूँ हर शाम तू अंजान अंधेरे से डरने लगती है
जला दिए अपने घर मे उजाला करने लगती है
अंधेरों से तो मेरा बड़ा पुराना नाता है
मुझे तेरे आँसू पोंछकर तुझे हंसाना आता है
तेरी जिंदगी रोशन करने की आरजू अब भी दिल मे बाकी है
इक दिन तेरी जिंदगी रोशन करने दियों की जगह मैं खुद ही जलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा

 

 

 

.............................काफी देर से आपके इस खुबसूरत नज़्म पे नजर पड़ी पल्लव जी ......... कोई शक नहीं काफी सराहनीय रचना है .... बिलकुल अपने दिल की आवाज सुना दी है उम्मीद करता हूँ उन्होंने भी समझी होगी जो इशकी प्रेरणा बनी होंगी ........ मेरी शुभकामनाये

Comment by Babita Gupta on June 20, 2010 at 1:48pm
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
हर रात हौले से जब बंद करेगी तू अपनी आँखें
तेरे सपनो के द्वार इक दस्तक मैं दे जाऊँगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा,

warning deney key style mey likhi gai kavita achhi hai, Pallav jee badhiya likhey hai ,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 20, 2010 at 11:22am
बहुत बढ़िया पल्लव जी, आप की रचनाओ मे कुछ तो ज़रूर है जिससे पढ़ने लगने पर आदमी खो जाता है, अच्छी रचना, खूबसूरत अंदाज, धन्यवाद,
Comment by baban pandey on June 20, 2010 at 10:00am
अंजाने मे ही सही इक नया वृक्ष खिला दिया
याद रखना तू की मैं पल्लव हूँ नाता है मेरा पेड़ों से
इस वासन्ती वेला मे मैं फिर से खिलने आऊंगा
waah...bhai ..kya shabado ka jaal buna hai bhai,,,,,thanks

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 20, 2010 at 8:21am
बहुत सधी हुई सोच...........सुन्दर शब्द चयन एवं सुन्दर कविता...............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service