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दे दे

जिसमे शब्द नही, हो चेहरा तेरा ला मुझे वो किताब देदे
जो बहाएँ हें हर पल मेने, मेरे इन आंसूओं का हिसाब देदे

कोई पीता है आँसू यहाँ तो किसीने पिए हैं अपने सारे गम
मैं तो हर रात यह कहता हू ला साकी थोड़ी और शराब देदे

अब देगी या तब देगी यही सोच कर काट दी उमर अपनी मैने
जो पूछा था तुझसे मैने अब तो मेरे उस सवाल का जवाब देदे

नही पता तुझे काँटों का चुभना दर्द नही देता थोड़ा भी मुझे
ला मुझे तेरे बदन की खुश्बू वाला,तुझसा हसीन एक गुलाब देदे

कहती हैं पड़ोस वाली दादी की मर मिटेंगे आज भी हज़ारों हम पे
जो हम होठों पे लाली,आँखों मे काजल ओर बालों मे खिजाब देदे

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 24, 2010 at 4:08pm
प्रिय पल्लव भाई, एक बार फिर से बहुत अच्छा प्रयास है आपका - मैं बहुत खुश हूँ ! विचारों में परिपक्वता और कव्यात्मिक शब्दावली का चयन तो खैर तजुर्बे के साथ ही आया करता है, लेकिन ज़रूरी होता है निरंतर लिखते और स्वाध्याय करते रहना ! किसी भी काव्य रचना की सुन्दरता इसी में होती है कि हर शब्द बडे ध्यान से चुना जाए, फिर उसको बडे करीने से पिरोया जाए ! एक भी फालतू शब्द शेयर का स्वरूप बिगड़ सकता है !

//कहती हैं पड़ोस वाली दादी की मर मिटेंगे आज भी हज़ारों हम पे
जो हम होठों पे लाली,आँखों मे काजल ओर बालों मे खिजाब देदे //

यह शेयर बहुत ही अटपटा लागता है और किसी संजीदा ग़ज़ल का हिस्सा नही हो सकता ! मैं आपकी ग़ज़ल में कोई मीन मेख निकालने कि कोशिश नहीं कर रहा, लेकिन अगर यह ग़ज़ल कुछ इस प्रकार कही जाती तो शायद ज्यादा प्रभावशाली होती !

कोई शब्द न हो, बस चेहरा तेरा,ऐसी कोई किताब दे !
जो बहे थे तेरी फुरकत में, उन अश्कों का हिसाब दे !

कोई आंसू पीता है अपने, और अपने गम पीता कोई,
पर शाम ढले दिल कहता है, कोई आके मुझे शराब दे !

ये सोच के उम्र गुजारी है, इक दिन तो मिल ही जायेगा,
जो पूछा था बरसों पहले, उस प्रश्न का मुझे जवाब दे !

तेरे हिज्र के काँटों का बिस्तर, किस्मत है मेरी बरसों से,
पर कभी तो अपने मिलन की ख़ुशबू का मुझे गुलाब दे !

ढल चुकी जवानी, बालों में चाँदी सी लटें लहराती हैं,
अब कौन जो उजडे गुलशन को सुर्मा, लाली, खिजाब दे !

अपना हक समझ कर बड़ी ईमानदारी से अपनी राये देने की कोशिश की ही - आशा करता हूँ कि आप अन्यथा नहीं लेंगे !
Comment by baban pandey on June 24, 2010 at 10:51am
कोई पीता है आँसू यहाँ तो किसीने पिए हैं अपने सारे गम
मैं तो हर रात यह कहता हू ला साकी थोड़ी और शराब देदे........dard me duba hua hai bhai....dhanyabad

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