आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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वाह ! मंटो की कथा " ठंडा गोश्त " को संदर्भित करते हुए बिम्बात्मक लघुकथा कहाँ का आपकी ये शैली गज़ब की है . इस लघुकथा का सौंदर्य , आज की परिस्थितियों पर कटाक्ष करती हुई अपनी उत्कृष्टता को पहुँच गयी है . इस कथा को आने वाले सालों में भी याद किया जाएगा . ह्रदय से बधाई आपको आदरणीय पवन जी
मैंने इस कथा को पढ़ते हुए // दुनिया की स्याहियो में भी हम रज्जाई है। // का अर्थ कथा सन्दर्भ में जो समझा है वह ये है कि इस अँधेरी रात के सामान इस जागती दुनिया में हम सब रजाइयों के भीतर नग्न, अर्धनग्न .........! यहाँ तीक्ष्ण कटाक्ष पाया है , फिर भी आदरणीय पवन जी आप बताईए कि क्या यहाँ ,इस पंक्ति में इसी तरह का कुछ भाव छुपा है या कुछ और इससे इतर कोई दूसरा भाव है यहाँ ? यहाँ मंच पर समवेत सीखने -सीखाने में ये चर्चा बहुत काम आएगी हम सबके अगले लेखन में . सादर .
दुनिया के अंधेरो में भी हम आशावादी हैं।आदरणीय ये उर्दू के शब्द मंटो को पढने पर मिले ।
इस टिप्पणी के ज़रिये मुझे अपरोक्ष रूप में "सीख" तो आपने दे दी आ० कांता रॉय जी, लेकिन क्या ये भी देखा कि शब्द "रज्जाई" सही भी है या नहीं? और जिसको आप अँधेरी रात या अँधेरा कह रही हैं उसको उर्दू में "सियाही" कहा जाता है "स्याही" नहींI "सियाही" और "स्याही" में ज़मीन-आस्मान का फर्क होता हैI
धन्यवाद आदरणीय ,प्रयास तो किया है कि कुछ बहतरीन हो ।गुरु जनों के मार्गदर्शन से निखार लाने प्रयासरत
रहूंगा ।आभारी हूँ उत्साह वर्धन हेतु ।
आ० पवन जैन जी बदलती तस्वीर को केन्द्रित कर लिखी गई अच्छी लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई .
धन्यवाद आदरणीय नयना जी ।
जनाब पवन जैन साहिब ,प्रदत्त विषय को दर्शाती अच्छी लघु कथा के लिए ... मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
शुक्रिया जनाब तस्दीक अहमद खान साहेब ।
राजधानी दिल्ली के हालात बयाँ करती सार्थक रचना ,पर ये हालात कमोबेश हर बड़े शहर का है , कहीं कहीं कुछ बाते स्पष्ट नहीं हैं रचना में , हार्दिक बधाई इस रचना पर आदरणीय पवन जैन जी
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी जरूर कुछ कमी रह गई है , गुरु जनों के मार्ग दर्शन से सुधार हेतु प्रयासरत रहूंगा ।धन्यवाद आपका ।
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