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बहुत ही बढ़िया कथा ,व्यवस्था पर ज़ोरदार तंज
// काहे सिपाहीजी,हम अपुन देश के वासी
नहीं हैं का?', मोबाइल पर कुछ देखते हुए एक भिखारी ने सवाल दागा।
-हाँ भई, बात तो सोलह आने सच है। है कि नहीं?हमारे मन में भी तो आरक्षण के लड्डू फूटते रहते हैं न।',भिखारी का दूसरा साथी चहका//
वाह ....बहुत कुशलता से आपने प्रदत्त विषय को समाहित किया है आपनी इस रचना में ,हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मनन जी
बस यही दिन देखने बाकी रह गए हैं जब भिखारी भी आरक्षण माँगेंगे मेरे हिसाब से तो माँगना चाहिए ...सभी को सभी वर्ग को ...सिर फोड़ देना चाहिए सरकार का ....तभी ये आरक्षण का कैंसर खत्म होगा और आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण रक्खा जाएगा
शानदार कटाक्ष .....मनन जी ...बहुत बढ़िया बधाई स्वीकारें .
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