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आदरणीय सतविंदर जी, इस लघुकथा के लिए इन कारणों से दिल से बधाई दे रहा हूँ-
1. समसामयिक और कालजयी कथानक का चुनाव और उसका सफल निर्वाह
2. कथा में जबरदस्त प्रवाह
3. पंचलाइन से जोर का झटका, जो अपेक्षित भी --"वह निःशब्द था।"
मगर थोड़ा सा चुस्त दुरुस्त की गुंजाइश भी निवेदित है. आदरणीय योगराज सर, का मार्गदर्शन मिलना एक बड़ी उपलब्धि मानना चाहिए.
सादर
आपकी यह रचना तो जैसे दृश्य खींच लेती है आँखों के सामने| गुरुजनों और वरिष्ठजनों की बातों को संज्ञान में लें तो निश्चित ही श्रेष्ठतम हो जायेगी| रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय सतविंदर जी अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. हार्दिक आभार
'रंगा सियार'
आज रंगे सियार का मन ग्लानि से भरा हुआ था i एक बड़ी हवेली के बगीचे में झाड़ियों के पीछे छिपा हुआ था वो I हवेली में होली का उत्सव चल रहा था I सब लोग रंग में पुते थे और एक दूसरे को रंग से भरे हौदे में डाल रहे थे I उसके ह्रदय को चीर रहा था ये दृश्य I उसे याद आ रहा था वो दिन जब वो रंग से भरे हौदे में गिरकर रंग गया था I सारे जंगल के जानवरों ने उसे कोई खूंखार जानवर समझ कर अपना राजा बना लिया था I ग्लानि के बहते आँसूं उसे याद दिला रहे थे कि कैसे फिर उसने अपने सियार भाइयों पर जुल्म करके उन्हें जंगल से बाहर निकलवा दिया था I पोल खुलने के बाद , जंगल के जानवरों से तो उसने जान बचा ली थी पर ये ग्लानि का भार उसे अब जीने नहीं दे रहा था I
दो लोगों को झाड़ियों के पास आता देख वो डर कर सिमट गया IIउनकी बातें वो साफ़ सुन पा रहा था I
"दद्दा i आपके भाई जैसे हैं दोनों I आपको चुनाव जितवाने के लिए जान झोंक दी थी दोनों ने i कुछ नाराजगी है तो हम समझा देंगे ,पर दद्दा ..ये तो..,.एक बार फिर सोच लो "I डरी हुई हकलाई आवाज़ थी ये I
" भाई जैसे हैं और हमारे बारे में सब जानते भी है I वो झूठे कागजात से लेकर लड़की वाले किस्से तक, एक एक बात पता हैं इनको हमारे बारे में I बड़ी मुश्किल से मिली है ये कुर्सी ,रिस्क नहीं ले सकते हैं हम अब " Iये आवाज़ भारी थी I
"पर दद्दा i"
"चल शाबाश ,घबरा मत I ये गोलियां ले और डाल आ उनकी ड्रिंक में I कल चलेंगे ना फिर भाभियों के पास शोक जताने i ला , तेरा चेहरा और अच्छे से पोत दूं रंग से ,I होली है .." I भारी आवाज़ जोर से हंस रही थी I
दोनों के जाने के बाद रंगा सियार झाडी के पीछे से बाहर आ गया I अब उसका मन हल्का था I ग्लानि का बोझ उतर चुका था और एक आत्मविश्वास सा महसूस कर रहा था वो अपने अन्दर I पास में ही होली के रंगों से बन आये कीचड में वो लोट लगाने लगा I एक सफ़ेद खादी टोपी वहां गिरी पड़ी थी I,कुछ देर उसने उसे देखा और फिर मुहँ में दबाकर जंगल की ओर दौड़ पड़ा I
मौलिक व् अप्रकाशित
मोहतरमा प्रतिभा पाण्डेय साहिबा , रंग पर आधारित अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बढ़िया कथानक ..ऐसा ही होता हैं....सादर __/\__
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