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एक रुकनी ग़ज़ल ... गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ 

ज़िन्दगी भर

मौत का डर 

प्यार तो है

ढाई आँखर

तोड़ पिंजरा

आजमा पर

ये सियासत

एक अजगर

होश जख्मी

हुस्न खंजर

गुमनाम पिथौरागढ़ी

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Comment by Ravi Shukla on January 8, 2016 at 5:22pm

आदरणीय गुमनाम जी  क्‍या कहने आपकी ग़ज़ल के। बहुत ही खूब साधा है आपने रुक्‍न को बहुत बहुत बधाई कुबूल करें

Comment by Ravi Shukla on January 8, 2016 at 5:22pm

आदरणीय गुमनाम जी  क्‍या कहने आपकी ग़ज़ल के। बहुत ही खूब साधा है आपने रुक्‍न को बहुत बहुत बधाई कुबूल करें


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2016 at 12:48pm

आदरणीय गुमनाम भाई , बहुत सुन्दर एक रुक्नी गज़ल कही है , बहुत कठिन बात है एक रुक्नी गज़ल ! आपको दिली बधाई गज़ल के लिये ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 6, 2016 at 3:48pm
जनाब गुमनाम पिथौरागढ़ी जी बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर ग़ज़ल के लिए। कुछ अशआर और चाहिए....!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 6, 2016 at 11:23am
ज़िन्दगी भर
मौत का डर
प्यार तो है
ढाई आँखर
तोड़ पिंजरा
आजमा पर
ये सियासत
एक अजगर
होश जख्मी
हुस्न खंजर

उम्दा उम्दा ग़ज़ल।
Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 5:41pm
जनाब गुमनाम जी आदाब,वाह वाह बहुत ख़ूब,छोटी बह्र में कमाल की ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं |
Comment by Sushil Sarna on January 4, 2016 at 8:23pm

ये सियासत
एक अजगर
होश जख्मी
हुस्न खंजर
क्या बात है आदरणीय बहुत ही दिलकश लगी आपकी ये एक रुकनी ग़ज़ल। हार्दिक बधाई।

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