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पीठ का दर्द शायद मन की उदासी के कारण और बढ़ गया था..मगर पुरानी यादों के फाये ने दवा से तेज़ असर दिखाया.. पुराने रिश्तें कितने गहरे होते हैं.. अब तो हम भी जानने लगे हैं... एक बार फिर से सबक सिखाती कथा.. कि कैसे बिना किसी आडम्बर के बात कही जा सकती... प्रणाम सर..`
ये छोटी छोटी खुशियां कितनी बड़ी होती हैं और अगर पुरानी यादें भी उनसे जुडी हों तो फिर क्या ही कहने | बहुत भावपूर्ण और बेहतरीन प्रस्तुति हुई है , बहुत बहुत बधाई आपको आ योगराज सर
आदरणीय साथियों, आपने जिस प्रकार मुक्तकंठ से इस नाचीज़ की की तुच्छ सी रचना को सराहा मैं उसका शुकरगुज़ार हूँ I आपकी प्रशंसा से संबल मिला और मुझे भी यह लघुकथा अच्छी लगने लगी I आप सभी का ह्रदयतल से आभार I
संयोग
"कितनी सुंदर लाल रंग की ये कार ,उफ़ हाथ रखो तो मानों फिसल जाये ,ये तो और भी प्यारी है चमकीली सुनहरी कार . काश ! कभी मैं कार में बैठ पाती "
सिग्नल पर फूल बेचने वाली कम्मो हमेशा ऐसे ही हसरत भरी निगाहों से कारों को देखती .जब कोई कार लाल बत्ती होते रूकती ,कम्मो फूल ले शीशे के पास खड़ी हो जाती.यदि शीशा नीचे नहीं भी होता तो वह कार को सहलाती रहती .कभी कोई फूल लेने या उसे भगाने के लिए कांच नीचे करता तो वह ,लपक कर अंदर देखने लगती .उसे और कोई गाड़ी नहीं पर कार बहुत आकर्षित करती ,उसकी दिली तमन्ना थी कि वह कभी कार के अंदर भी बैठती .उसदिन शाम होने को आया था,उसके फूल लगभग सारे बिक चुके थे .फूल वाले का हिसाब कर वह अपनी बस्ती की तरफ जा रही थी कि एक कार तेजी से बगल से गुजरी .आदतानुसार वह लालच भरी नज़रों से कार की तरफ देखने लगी ,तो देखा अंदर एक लड़की शीशे पर हाथ मार मार रो या चिल्ला रही है . उसने देखा कुछ लोग और भी हैं कार में जो उस लड़की को खींच रहें हैं या मार पीट कर रहें हैं .
कम्मो ने आव देखा न ताव एक बड़ा सा पत्थर उठा कर चला दिया ,जो सीधे कांच तोडती चालक को जा लगी .कार का संतुलन बिगड़ गया और वह सामने पेड़ से जा टकराई .कम्मो के वहां पहुँचने तक ,घायल चालक और लड़की को छोड़ दो लड़के तेजी से भाग गए . कार में धुँआ धुँआ सा भर गया था . उस फटेहाल लड़की को उसने झट से अपना स्वेटर खोल कर पहना दिया .
"दीदी ,मैं यहीं रहती हूँ ",ऊँगली से उसने अपना घर दिखाया .
अगले दिन सुबह ,जब वह घर से अपनी माँ के साथ निकली तो सामने एक नीली रंग की कार देख ,उसकी इच्छा बलवती हो जोर मारने लगी .तभी दरवाजा खुला ,अंदर से वही कल वाली दीदी अच्छे से कपड़ों में उतरी साथ में उसके पिताजी ,स्वेटर लौटाते हुए उन्होंने हाथ जोड़ कहा ,
"बहनजी ये आपकी लड़की है ?कल इसने मेरी बेटी की इज्जत बचाई है .बहुत बहादुर है .बोलो बेटा तुमको क्या चाहिए ?"
कहना न होगा कि,थोड़े ही समय बाद कम्मो ख़ुशी ख़ुशी उस नीली कार के अंदर बैठ शहर के चक्कर लगा रही थी .आज उसकी एक बड़ी आकांक्षा जो पूरी हो गयी थी .
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मौलिक व् अप्रकाशित
भला करने पर लाभ होता ही है, और यह लाभ अपनी आकांक्षा पूरी होने पर हो तो कहना ही क्या? इस सकारात्मक रचना हेतु बधाई स्वीकार करें आदरणीया रीता गुप्ता जी|
धन्यवाद आदरणीय चंद्रेश जी .
ये तो महज संयोग था की बच्ची की आकांक्षा पूरी हुई . कार के प्रति उसकी एक लालच थी जिसने अनजाने उससे भला कार्य करवा लिया .आभार .
कुछ अच्छा काम करने से वांछित फल मिले तो उसका स्वाद बढ़ जाता है बहुत अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई आ० रीता जी
ये तो महज संयोग था की बच्ची की आकांक्षा पूरी हुई . कार के प्रति उसकी एक लालच थी जिसने अनजाने उससे भला कार्य करवा लिया .आभार .
//अगले दिन सुबह ,जब वह घर से अपनी माँ के साथ निकली तो सामने एक नीली रंग की कार देख ,उसकी इच्छा बलवती हो जोर मारने लगी .तभी दरवाजा खुला ,अंदर से वही कल वाली दीदी अच्छे से कपड़ों में उतरी साथ में उसके पिताजी ,स्वेटर लौटाते हुए उन्होंने हाथ जोड़ कहा ,//
शायद आपको भी कालखंड दोष का ध्यान नहीं रहा आ० रीता गुप्ता जी I
अफ़सोस ,सर जी .
समय मिले तो टिप्पणी को थोड़ा विस्तार देने का कष्ट करें प्रभाकर जी।
महज एक दिन से ( दिन भी कहाँ , एक रात ही तो बीती है ) कालखण्ड दोष आ गया ?
अग्रिम धन्यवाद।
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