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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-3 (विषय: बंधन)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर वन्दे।
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पहले दो आयोजन बेहद सफल रहे। लघुकथाकारों ने बहुत ही उत्साहपूर्वक इन में सम्मिलित होकर इन्हें सफल बनाया। न केवल उच्च स्तरीय लघुकथाओं से ही हमारा साक्षात्कार हुआ बल्कि एक एक लघुकथा पर भरपूर चर्चा भी हुई। गुणीजनों ने न केवल रचनाकारों का भरपूर उत्साहवर्धन ही किया अपितु रचनाओं के गुण दोषों पर भी खुलकर अपने विचार प्रकट किए।  कहना न होगा कि यह आयोजन लघुकथा विधा के क्षेत्र में एक मील के पत्थर साबित हुए हैं । इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है....

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-३  
विषय : "बंधन"
अवधि : 29-06-2015 से 30-06-2015
(आयोजन की अवधि दो दिन अर्थात 29 जून 2015 दिन सोमवार से 30 जून 2015 दिन मंगलवार की समाप्ति तक)

अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक सर्वश्रेष्ठ लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२.सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हलकी टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
४. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
५. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
६.  नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
७. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
८. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
९ . सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर केवल एक बार ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 29 जून 2015, दिन सोमवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदरणीया सीमाजी, समाज और परिवार के आधे हिस्से की दुनिया ही अलग हुआ करती है. इतनी अलग कि हमें, हम पुरुषों को, इसका भान भी नहीं होता कि ऐसी भी समस्याएँ हैं, जिनसे घर-परिवार की बेटियाँ इतनी गहराई से दो-चार हुई गुजरती हैं. लेकिन यह एक सच्चाई है.
उसी ओर एक सुहागन अपने पति के व्यवहार को सहज ढंग से प्रस्तुत करने को बाध्य है. क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता उसके साथ बँधी है. चाहे वो क्षुद्र कितना ही पातकी क्यों न हो.

बहुत ही विचारोत्तेजक लघुकथा के साथ आयोजन में अपनी उपस्थिति बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएँ

आदरणीय सौरभ सर... आपकी टिप्पणी ने सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया है.. ह्रदय से आभारी हूँ..

एक आह निकालती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीया सीमा सिंह जी । लघुकथा की आखिरी पंक्ति अपने आप में कमाल है , एक औरत का दर्द बहुत शिद्दत के साथ उभर कर आया है उसमें । अपने विवाह को निभाने का बंधन , अपनी बहन की नज़र में अपने बदचलन पति को सही साबित करने का सफल / असफल प्रयास और इन सबसे ऊपर पुरुष और स्त्री की सोच में फ़र्क़ को दर्शाती इस बेहतरीन रचना के लिए तमाम मुबारकवाद क़ुबूल करें । वाह , वाह । 

आ० विनय जी कथा को पसंद किया बहुत धन्यवाद..आपकी प्रेरणा का ही परिणाम है.. जो मैं आज यहाँ पर हूँ..

 वाह , इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सीमा जी 

पति कैसा भी हो दूसरों के सामने उसका चेहरा उजला ही दिखाना है दिल में चाहे खंजर चुभ रहे हों पर उस वैवाहिक बंधन को निभाना है हमारे समाज में बेटियों के अन्दर ये बात ठूस- ठूस कर बचपन से भर दी जाती है आपकी लघु कथा की नायिका उसी भावना उसी रस्मो रिवाज के तहत दिल से मजबूर दिखाई देती है ..हमे इस सोच को हटाना होगा ताकि गंदी मानसिकता को बढ़ावा ना मिले  आज पत्नी की बहन के साथ कल किसी और के साथ गलत हरकत ये सिलसिला क्या रुकेगा कभी ?बंधन पूजनीय है जब तक सामने वाला भी उस बंधन की मर्यादा का सम्मान करे |बहुत से प्रश्नों को जन्म देती है ये लघु कथा ,बहुत- बहुत बधाई आपको सीमा जी. 

बहुत खूब आदरणीया सीमा जी, बहुत अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकारें। 

एक  सामाजिक बुराई को , नारी की मज़बूरियों को  सामने लाती आपकी कथा के लिये आपक हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया , सीमा जी ।

घर की इज़्ज़त का ख्याल, आपने पति की कमज़ोरियों पर पर्दा डालने की आदत और नज़दीकी रिश्तेद्वारों द्वारा यौन शोषण की ऐसी घटनाएँ, कुछ भी तो बनावटी नहीं। कुछ लोग भले ही मानवी को कटघरे में खड़ा कर दें, किन्तु यह कड़वी लेकिन ज़मीनी सच्चाई है कि कुछ बंधन होते ही ऐसे हैं जहाँ न चाहते हुए भी विद्रोह को अंदर ही अंदर मार देना पड़ता है। इसी को ही आपने सुन्दर ढंग से शब्दांकित किया है आ० सीमा सिंह जी। बहुत बहुत बधाई स्वीकारें।

बहुत बहुत धन्यवाद सर

आदरणीय सीमा जी

आपकी कथा स्वागत ही नहीं सराहना के योग्य है . भारतीय  नारी अपने पति की लम्पटता को  छिपाने के लिये  बाध्य हुयी है  i हमारा समाज भी कितनी वर्जनाओ से भरा है .  आपकी कथा  मुझे बहुत अच्छी लगी. सादर .

आभार सर ..

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