For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- मैंने ग़ज़लों में उतारी ज़िन्दगी...

2122-2122-212

'इम्तिहानों में गुज़ारी ज़िन्दगी'
इस तरह हमने सँवारी ज़िन्दगी

सर्दियों की धूप थी पहले मगर
फ़स्ल-ए-बाराँ अब हमारी ज़िन्दगी

बाज के पंजों ने मसला देर तक
एक चिड़िया आज हारी ज़िन्दगी

मैकदे की राह दिखलाई इसे
बाम-ए-ग़म से यूँ उतारी ज़िन्दगी

सर पे चढ़ कर बोलता इसका नशा
सबको अपनी जाँ से प्यारी ज़िन्दगी

जो बनाते दूसरों का आशियाँ
वो रहें सड़कों पे सारी ज़िन्दगी

इसके मजमे की कोई सीमा नहीं
आदमी दर्शक, मदारी ज़िन्दगी

क्यूँ बनाया उस खुदा ने ये जहाँ
मुझको दे कुछ जानकारी ज़िन्दगी

ख़्वाब मेरे इसके नोके तीर पर
इक बहुत उम्दा शिकारी ज़िन्दगी

ढ़ूँढ़ता ही मैं रहा आबे हयात
मैकदों में छान मारी ज़िन्दगी

फ़ातिहा वो कब्र पर मेरी पढ़ें
काश मैं होती तुम्हारी ज़िन्दगी

मैं तो मर कर भी जिऊँगा शान से
मैंने ग़ज़लों में उतारी ज़िन्दगी

-- दिनेश कुमार १५/०३/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 565

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2015 at 9:48pm

बहुत बहुत पसंद आई दिनेश भैय्या आपकी ये ग़ज़ल सभी शेर प्रभावित कर रहे हैं किसी एक की क्या बात करूँ 

फिर भी इन शेरों को कोट करना चाहूंगी बहुत ही शानदार हैं 

क्यूँ बनाया उस खुदा ने ये जहाँ
मुझको दे कुछ जानकारी ज़िन्दगी

ख़्वाब मेरे इसके नोके तीर पर
इक बहुत उम्दा शिकारी ज़िन्दगी

ढ़ूँढ़ता ही मैं रहा आबे हयात
मैकदों में छान मारी ज़िन्दगी

और अंतिम शेर ने तो भावुक ही कर दिया 

तहे दिल से दाद कबूलिये 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:31pm


 इसके मजमे की कोई सीमा नहीं
आदमी दर्शक, मदारी ज़िन्दगी

मैं तो मर कर भी जिऊँगा शान से
मैंने ग़ज़लों में उतारी ज़िन्दगी------------------- dinesh jee bahut umda gajal ,  congrats

Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 3:36pm

Aadarniya Dinesh Kumar Ji,

Kya Sabd gadhe hain aapne. Aapar Harsh ho raha hai. Bahut badhai.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 1:12pm

जो बनाते दूसरों का आशियाँ
वो रहें सड़कों पे सारी ज़िन्दगी

मैं तो मर कर भी जिऊँगा शान से
मैंने ग़ज़लों में उतारी ज़िन्दगी   --- बहुत खूब आदरणीय दिनेश भाई , एक और अच्छी गज़ल के लिये आपको बहुत बधाई ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 16, 2015 at 11:19am
बहुत खूब दिनेश जी, अच्छे अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल कीजिए
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2015 at 5:54am
मैं तो मर कर भी जिऊँगा शान से
मैंने ग़ज़लों में उतारी ज़िन्दगी
सुन्दर, बधाई, आदरणीय दिनेश कुमार जी, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 16, 2015 at 4:01am
वाह वाह आदरणीय दिनेश भाई जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दिल से दाद हाज़िर है।
एक मिसरे पर ध्यान चाहूंगा

ख्वाब मेरे तीर की जब नोक पर
इक बहुत उम्दा शिकारी ज़िन्दगी
Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 3:43am

आदरणीय दिनेश जी,इस सुन्दर ग़ज़ल पर बधाई आपको !

/बाज के पंजों ने मसला देर तक

एक चिड़िया आज हारी ज़िन्दगी/

/ढ़ूँढ़ता ही मैं रहा आबे हयात

मैकदों में छान मारी ज़िन्दगी/ .....बहुत खूब ! 

Comment by maharshi tripathi on March 15, 2015 at 9:31pm

बहुत खूब आ. दिनेश कुमार जी ,,,खूबसूरत गजल पर आपको हार्दिक बधाई |

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 15, 2015 at 2:41pm

वाह सर जी खूब पूरी ग़ज़ल ........ कमाल हुई है बधाई स्वीकारें.,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service