For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

आदमी में आदमीयत है नहीं

इससे बढ़कर  कोई दहशत है नहीं

 

रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर

इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं

 

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं

 

काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ

जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं

 

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं

 

अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे

अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

भुवन निस्तेज

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 857

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on May 16, 2014 at 12:05am

सम्पूर्ण सुधिजनों को सुझावों के लिए धन्यवाद, मतले पर ध्यान नहीं दे पाया था, इसपर शर्मिन्दा हूँ, आदरणीय कृष्ण सिंह पेला जी के सुझावानुसार मतला परिवर्तित कर दिया है, जहाँ तक बह्र का सवाल है, इसमें २१२२ २१२२ २१२ अरकान लिए हैं, कोई त्रुटी रही हो तो सुझाए... आभार...

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 12, 2014 at 1:41pm

भुवन भाई आपकी ग़ज़ल में काफिया कहाँ है मतले की तक्तीअ पुनः कर लीजिये साथ ही साथ बह्र भी देख लीजिये मतला बह्र में नहीं है.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 8:42am

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं...........वाह! क्या बात कही है

 

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं.............बहुत खूब

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय भुवन जी, दिली बधाइयाँ स्वीकार करें

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 10, 2014 at 11:47pm

खूबसूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाई...

काफिया dekh len sir

Comment by नादिर ख़ान on May 10, 2014 at 4:29pm

आदरणीय भुवन जी उम्दा कोशिश के लिए आपको बहुत बहुत बधाई....

काफिये को लेकर  थोड़ा संदेह है हमारे मन मे, क्योंकि आपने मतले में काफिया आदमियत और तबीयत  लिया है तो उसे आगे भी मेंटेन किया जाना था । बाकी सुधिजन ज्यादा प्रकाश डालेंगे ।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2014 at 7:13pm

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा
ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं .... बहुत खूब … हार्दिक बधाई आदरणीय भुवन निस्तेज ज़ी

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 9, 2014 at 11:57am

आदरणीय भुवन जी
अच्छी ग़ज़ल पर बहुत बहुत मुबारकबाद

Comment by Krishnasingh Pela on May 9, 2014 at 9:00am

वाह अा.भुवन जी क्या बात है ! लाजबाब अश'अार हैं । 

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं (हकीकत अब खाेती जा रही है)

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं  (बहुत खूब एहसास ।) 

काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ

जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं (इस पर थाेडा सा गाैर फरमाएंगे क्या )

Comment by Savitri Rathore on May 8, 2014 at 11:31pm

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं

 

अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे

अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

वाह.……बहुत खूब !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 7, 2014 at 9:21pm

अच्छे भाव हैं आदरणीय भुवन जी हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
20 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service