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ग़ज़ल: शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये

दिल में उम्मीदों का चलता कारवाँ रखिये

हर अँधेरे के लिए कोई शमाँ रखिये

 

बज़्म में आ ही गए कुछ तो निशाँ रखिये

कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये

 

रोज़ का मेहमाँ कोई मेहमाँ नहीं होता

शह्र के बाहर सही अपना मकाँ रखिये

 

देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो

कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये

 

ख्वाब जब होंगे नहीं तासीर क्या होगी  

ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये

 

तीरगी को है मिटाती एक चिंगारी

हिज्र के आलम में भी वस्ले-गुमाँ रखिये

 

कब नजाने खुदकुशी ये गाँव कर लेगा

शह्र की ख़ुदग़र्ज़ियाँ गर दरमियाँ रखिये

 

अब भला सैयाद का डर क्यों रहे उनको   

यूँ अगर ‘निस्तेज’ अपना पासबाँ रखिये

 

घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा

शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये

भुवन निस्तेज 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by भुवन निस्तेज on May 14, 2014 at 9:42pm

आदरणीय  Mukesh Verma "Chiragh" जी सुझाव के लिए आप्लोगों क हार्दिक आभार, मतले में सामान्य बदलाव किया है, सादर...

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 10:00pm

आदरणीय भुवन जी
जितनी भी तारीफ की जाए कम है..बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने. मुबारकबाद क़ुबूल करें
शिज़्जू जी की बात मुझे भी सही लगती है. उर्दू में चंद्र बिंदु यहाँ क़ुबूल नहीं है.

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:16am

आ. कृष्ण सिंह पेला जी सादर धन्यवाद...

आ. vijay nikore जी धन्यवाद...

आ. गुमनाम पिथौरागढ़ी साहब बहुत बहुत धन्यवाद...

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:13am

आदरणीय शकील जम्शेद्पुरी जी हार्दिक आभार...

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:12am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपके  स्नेह के लिए सदैव आभारी हूँ, कृपया त्रुटियाँ हो तो बेझिझक फटकार लगा दें...

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 16, 2014 at 5:07pm

देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो

कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये

कब नजाने खुदकुशी ये गाँव कर लेगा

शह्र की ख़ुदग़र्ज़ियाँ गर दरमियाँ रखिये

घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा

शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये

बहुत खूब  बधाई स्वीकार करें

Comment by vijay nikore on April 16, 2014 at 4:07pm

बहुत खूब गज़ल कही है। बधाई।

Comment by Krishnasingh Pela on April 15, 2014 at 11:29pm

... कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये 

वाह क्या बात भुवन निस्तेज जी । जरुर अाप का अंदाज ए बयाँ कुछ अलग ही है ।ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ  की जाये कम है । 

...कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये

...ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये । 

एेसे एेसे सानी हैं जिनका काेई सानी नहीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 15, 2014 at 6:06pm

आदरनीय भुवन भाई , लाजवाब गज़ल कही अहि , दिली बधाई स्वीकार करें ॥

घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा

शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये -    बहुत खूब , भाई , बधाई !!

Comment by शकील समर on April 15, 2014 at 4:14pm

पढ़कर आनंद आ गया आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

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