For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंजुमन प्रकाशन;पुस्तक लोकार्पण समारोह:अनुभव

    सादर वन्दे आदरणीय साहित्यप्रेमियों,

    कहते हैँ न,पुस्तहित्य एक महकता हुआ उद्यान है"वास्तव मेँ 27अक्टूबर2013; को अंजुमन प्रकाशन नामरा पुस्तक लोकार्पण कसमारोह उच्च अनुभयुकटीछ ऐसा ही था। एक तरफ उद्यान सम सुरम्यता अंतःकरण को लुभा रही थी तो दूसरी ओर हर एक व्यक्तित्व का खिले हुए पुष्प के समान अलग ही आकर्षण गंध और सौंदर्य था... ।

            लखनऊ पहुंचकर आदरणीय बृजेश सर के निर्देशानुसार आदरणीय केवल जी के सहयोग से आदरेया कुंती जी के आवास पहुंची। गयी थी कुछ व्यवस्था में सहयोग करवाने की चाह से, क्योंकि समय से पहले ही पहुंच गयी थी परंतु आदरणीय शरदिंदु सर से जैसे ही भेंट हुई,स्नेह और आदर आन मिला। मुखर्जी सर ने स्वयं कार ड्राइव कर के हम तीनो को (मैं,मेरी बहन एवं मेरा भाई)को समारोह स्थल तक पहुंचाया। आदरणीय की आत्मीय बातों में रास्ते कीददूरी का आभास ही नही हुआ। मन में हलकी सी उद्विग्नता सी थी,तो असीम उत्साह भी। उत्साह साहित्य मर्मज्ञों के दर्शन,संदेश और निर्देश पाने की और उद्विग्नता...पता नही इतने उच्च कदों के मध्य मै गोचर भी हो पाऊँगी या नही। समारोह स्थल पर पहुंचते ही आदरणीय वीनस जी और आदरणीय बृजेश सर के मुक्तहृदय स्वागत ने भुला ही दिया की मैं पहली बार किसी साहित्यिक आयोजन में शरीक़ हो रही हूं। फिर क्या था, धीरे-धीर आदरणीय अरुण निगम जी,आदरणीय बागी जी,आदरणीया प्राची जी,अदेरया मीना पाठक जी,महिमा जी आदि सभी के दर्शन और व्यक्तिगत परिचय सुलभ होते गये।

        इसी हॉल में सबसे पीछे एक विभूति शांत मुद्रा में बठी हुई थी,हाथ में कलम,डायरी...मनो मूक रूप से बता रहे हों की सहियकार की दुनिया अलग ही होती है, आपके पास पहुंच नमस्ते कर परिचय पूछा तो बताया "एहतराम"। बड़ा अच्छा लगा मिलकर। इतनी देर में लगभग हमारा पूरा परिवार(ओ बी ओ) उपस्थित हो चुका था।आदरणीय अरुण निगम जी की सहजता और सौम्यता ने हृदय पर अनोखी छाप छोड़ी ।कुशवाहा सर के प्रवेश से हॉल में मुस्कान दौड़ गयी। आपके मस्त एवं स्वतंत्र स्वाभाव...क्या कहना! आपका वाक्यांश "हमलोग तो जाने वाले हैं,बागडोर तुम युवाओं क हाथ है" ने इतना छुआ की मुझे हर सफेदी से ढके ललाट से प्रतिध्वनित होता प्रतीत हो रहा था, चाहे श्री श्री गोपालदास नीरज जी का हो या आदरणीय नरेश सक्सेना जी,इस्लाम जी का या सोम ठाकुर जी का। आदरणीय सौरभ सर के आने से बड़ा आत्मबल मिला। 

   अभी तक मैं आदरेया कुंती जी की शारीरिक कठिनाइयों से अनजान थी। उन्हें देख एक अदभुत उर्जा का संचार हुआ। आपकी स्थिर निगाहें बता रही थी कि प्रतिभा के समक्ष सभी समस्याएं गौड़ हो जाती हैं। मुझे आपसे व्यक्तिगत न मिल पाने और 'बंजारन' न प्राप्त कर पाने का खेद है। अब मंच से साहित्यिक पञ्च मूर्तियों की स्नेहिल दृष्टि से प्रेम प्रवाह हो रहा था। पद्म्भूषण गोपलदास नीरज जी आशीर्वचन और दर्शन स्पंदित तो कर रहा था परन्तु एक ग्लानि भी कुरेद रही थी कि अब आपकी जरावस्था इस तरह आयोजनों में बुलाने की अनुमति नहीं देती। दीप प्रज्ज्वलित कर आदरणीय आशुतोष जी के द्वारा सरस्वती वन्दना,सभी माननीय अतिथियों के स्वागत के पश्चात् विभूतियों के कर कमलों से तीनो पुस्तकों:'मुक्तिपथ:प्रेमपथ', 'बंजारन' और 'परों को खोलते हुए-1' का लोकार्पण हुआ। श्री नीरज जी ने संदेश में कुछ इस तरह कहा-

"तुम लिखो हर बात चाहे जो कुछ भी हो ,साहित्य को बदनाम कर निम्न न बनना ।।" नरेश सक्सेना जी का वक्तव्य बहुत प्रभावी था। आदरणीय सरन घई जी का व्यक्तित्व तो आपकी 'मुक्तिपथ,प्रेमपथ:महाकाव्य'में स्पष्ट है। आदरणीय सौरभ सर ने साहित्य के दायित्व के प्रति प्रेरित करते हुए कहा- 'साहित्यकार समाज के अभिशाप को जीता है,यदि हम अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर रहे हैं तो चौर्य कर्म कर रहे है।"आपका गम्भीर उद्बोधन चिंतन का आह्वाहन करने वाला था। इस तरह 'परों को खोलते हुए' के सभी उपस्थित रचनाकारों ने अपने मंतव्य संक्षेप में प्रस्तुत किये। आदरणीय प्राची जी ने उच्च भावयुक्त आभार प्रकट किया।

   अंत में आदरणीय वीनसजी ने "...आप हैं तो ही हमारी अंजुमन है।" कहकर स्नेह में सराबोर कर दिया इस तरह आपके कुशल संचालन में तालियों की गड़गड़ाहत के साथ समारोह का समारोह का समापन हुआ।

  आदरणीय विजय निकोर सर,आदरणीय योगराज प्रभाकर सर,अदारणीय शालिनी रस्तोगी जी आपके न आ पाना अच्छा नहीं लगा,खैर... कोई महत्वपूर्ण कारण ही होगा। समारोह में उपस्थित एवं न उपस्थित हो पाने वाले समस्त साहित्य रसिकों को बारम्बार प्रणाम आभार । फिर मिलेंगे...

सादर

(मौलिक/अप्रकाशित)

 -वन्दना

Views: 1484

Replies to This Discussion

बहुत अच्छा लगा वंदना जी आपका ये संस्मरण पढ़ कर लगा ये सब मैं खुद वहीँ रहकर महसूस कर रही हूँ जिस अनुभव एहसास को आपने जिया है मैं हृदय से महसूस कर रही हूँ आपको ,व अंजुमन से जुड़े सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई देती हूँ ,असीम आशीष के साथ मेरी शुभकामनाएं. 

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपने संस्मरण को अपना महसूस किया इसके लिए आपका बहुत आभार।

आपके आशीष और शुभकामनाओं के लिए बहुत शुक्रिया आदरणीया।

स्नेह बनाये रखें

सादर

आदरणीया वन्दना जी,

 

इतने विस्तार से अपने अनुभव को साझा करने के लिए हार्दिक आभार।

यू एस ए से वहाँ तक मीलों की दूरी के कारण मैं न आ सका ... अत: यह

संस्मरण मेरे लिए और भी मान्य रखता है ... और फिर आपके लिखने का

ढंग इतना अच्छा है कि मैं बस पढ़ता ही गया।

 

"परों को खोलते हुए" संकलन से जुड़े सभी सुधिजनों को मेरा सादर प्रणाम।

 

आपको मेरा अभिनंदन, आदरणीया वन्दना जी।

 

विजय निकोर

अरे आदरणीय आप मेरा अभिनंदन... नहीं नहीं। आपको मेरा सादर नमन।

जी मैंने चित्र प्रस्तुत करने की कोशिश की है,आपको अच्छा लगा इसके लिए आपका बहुत आभार।

सादर

आदरणीया वंदनाजी आपके अनुभव को पढ़ने के बाद आप सभी से मिलने की इच्छा बलवती होती जा रही है लेकिन कुछ कारणों से मैं ओ बी ओ के कार्यक्रमों में शिरकत नही कर पाता हूँ, लेकिन आपके लेख को पढ़ते समय ऐसा लगा कि मैं भी लखनऊ पहुँच गया।

शिज्जू जी नमस्कार।

मैं देर से आपकी प्रतिक्रिया तक पहुंच सकी, क्षमा करें।

पढकर आपने 'लखनऊ पहुंच जाने का अनुभव किया...मेरा लिखना सार्थक हुआ। मैं भी अपने पूरे obo परिवार से मिलने की हार्दिक इच्छा रखती हूँ।

सादर

आदरणीय वंदना जी , आपका संस्मरण पढ़ कर आँखों के सामने एक सजीव चित्रण सा प्रस्तुत हुआ है, कुछ महत्वपूर्ण कारणों से मेरी अनुपस्तिथि रही है, आपका संस्मरण पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुयी, अंजुमन प्रकाशन से जुड़े सभी रचनाकारों को हृदय से बधाई व् शुभकामनाये

आपके संस्मरण पर आपको बहुत बहुत बधाई

सादर!

आदरणीय जितेन्द्र जी आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया से कुछ कुछ आपसे मिलने जैसा अनुभव हुआ।

आपका बहुत शुक्रिया

सादर

आज एक बार फिर आपके इस अनुभव को पढ़ा! हर बार यही लगता है कि जैसे आपने हम सबके मन की बात की हो! वो एक ऐसा अनुभव था जिस विस्मृत करना शायद जीवन भर संभव न हो!

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! इसे साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार! 

विस्मृत करने शायद जीवन भर सम्भव न हो...विस्मृत करने की आवश्यकता ही क्या है आदरणीय! ये क्षण तो सदैव उर्जा प्रदान करेंगे इसलिए जीवन भर संजोकर रखना है इन्हें,आपको भी और हम सबको भी।

सादर

आदरणीया वंदना जी,
आप जब हमारे घर आयी थीं मैं केवल जी के साथ किस काम में व्यस्त था वह तो आप स्वयं देख चुकी थीं. देर हो ही गयी थी,अतिथियों को भी लाना था.....आनन-फानन में मैंने आप लोगों को आयोजन स्थल तक पहुँचाया था. मेरा ध्यान सड़क पर दौड़ती ज़िंदगी की ओर था जहाँ 'ज़िंदगी' को ही सबसे बड़ा ख़तरा रहता है. आपसे ठीक से बात नहीं कर पाया था...फिर भी आपके सम्वेदनशील मन ने मेरे बारे में एक धारणा बनाई...यह आपका बड़प्पन है.
हम दोनों को (कुंती और मुझे)अफ़सोस है कि "बंजारन" आप को नहीं मिली है. मुझे sharadcoontee@gmail.com में यदि अपना पता भेज दें तो मैं आपको पोस्ट द्वारा भेज दूंगा.
आपने उक्त आयोजन में अपने अनुभव का जो मोहक वर्णन किया है वह आपकी विचारशीलता और सशक्त लेखनी का परिचायक है.
हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ आपको.
इति
शरदिंदु मुकर्जी

सादर प्रणाम आदरणीय।

यही तो मुझे बहुत अच्छा लगा की इतने आनन-फानन में होते हुए भी मुझ 'बच्चों' को इतना स्नेह और सहयोग दिया।

मेरी वास्तविक भावनाओं को आप 'बड़प्पन' बता रहें हैं,सच में ये आपका बड़प्पन है आदरनीय, बड़ों' की विशेषता ही यही है की छोटों की भी कुछ न कुछ विशेषता खोज कर बड़ा बना देना।

स्नेह बनाये रखें,मैं जरुर आप दोनों से मिलने आकर 'न मिल पाने' की कमी पूरी करूंगी।

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service