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अजीब विडम्बना है

अजीब विडम्बना है
कि अपने दुखों का कारण
अपने प्रयत्नों में नहीं खोजते
बल्कि मान लेते हैं
कि ये हमारा दुर्भाग्य है
कि ये प्रतिफल है
हमारे पूर्वजन्मों का...

अजीब विडम्बना है
जो मान लेते हैं हम
ब-आसानी उनके प्रचारों को
कि तंत्र-मन्त्र-यंत्र,
तावीजें-गंडे
शरीर में धारण कर लेने मात्र से
दूर हो जाएंगे हमारे तमाम दुःख !

अजीब विडम्बना है
लम्बी-लम्बी साधनाओं का
तपस्या का
मार्ग जानते हुए भी
हम खोजते हैं 'शार्ट-कट्स'
और इसी दरमियान कोई आकर
बताने लगता है दुखों का इलाज
बिना उसकी प्रामाणिकता जाने
मान लेते हैं उसे अपना 'कष्ट-निवारक'
गढ़ कर मूर्तियाँ
पूजने लगते हैं उसे....

अजीब विडम्बना है
कि एक दिन जानकार उसकी वास्तविकता
छिन्न-भिन्न हो जाता सब-कुछ
और हम ठगे-ठगे
राह में लुटे-पिटे
अपने विश्वास की वीभत्स ह्त्या-काण्ड का
देखते हैं नज़ारा....
खोजने लगते फिर
एक नया सहारा...

(मौलिक अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on September 17, 2013 at 10:51pm

अजीब विडम्बना है
कि एक दिन जानकार उसकी वास्तविकता
छिन्न-भिन्न हो जाता सब-कुछ
और हम ठगे-ठगे
राह में लुटे-पिटे
अपने विश्वास की वीभत्स ह्त्या-काण्ड का
देखते हैं नज़ारा....
खोजने लगते फिर
एक नया सहारा... ...................................... बहुत सुंदर, पंक्तियाँ गूढ अर्थों को समेटे हुए । इस अनुपम रचना के लिए बहुत बधाई । आपको आ0 अनवर जी ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 16, 2013 at 11:52pm

अजीब विडम्बना है
कि अपने दुखों का कारण
अपने प्रयत्नों में नहीं खोजते
बल्कि मान लेते हैं
कि ये हमारा दुर्भाग्य है
कि ये प्रतिफल है
हमारे पूर्वजन्मों का..........बहुत सटीक व्  प्रभावी कथन

बहुत बढ़िया रचना, बधाई आपको आदरणीय अनवर साहब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2013 at 11:49am

कर्म की प्रधानता और अंधविश्वास की तक़लीफे बयान करती आपकी ये रचना बहुत सुन्दर लगी !!  आदरणीय अनवर जी बधाई !!

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