एक बार फिर
इकट्ठा हो रही वही ताकतें
एक बार फिर
सज रहे वैसे ही मंच
एक बार फिर
जुट रही भीड़
कुछ पा जाने की आस में
भूखे-नंगों की
एक बार फिर
सुनाई दे रहीं,
वही ध्वंसात्मक धुनें
एक बार फिर
गूँज रही फ़ौजी जूतों की थाप
एक बार फिर
थिरक रहे दंगाइयों, आतंकियों के पाँव
एक बार फिर
उठ रही लपटें
धुए से काला हो गया आकाश
एक बार फिर
गुम हुए जा रहे
शब्दकोष से अच्छे प्यारे शब्द
एक बार फिर
कवि निराश है, उदास है, हताश है...
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
बहुत ही सार्थक सन्देश देती रचना के लिए बधाई श्री अब्वर भाई
एक बार फिर
आ गए आम चुनाव
पांच साल के अंतराल से
नेता आयेंगे घर घर
घूमेंगे गली गली
एक बार फिर
बाटेंगे नोट बंटेगी शराब
ढाणी ढाणी गाँव गाँव
वाह! बहुत खूब!
आदरणीय आपकी संवेदना पर क्या कहूँ ! ग़ज़ब !!
आपकी रचनाओं का कनवास ज़मीन पर फैला होता है और हम रचना को उस कैनवास पर मानों चल कर महसूसते हैं.
साहित्य का जो वास्तविक धर्म होता है उसे निभा ले जाने वाला रचनाकार आम आदमी के हृदय को छूता है.
वैसे इस बार थोड़ा और संयत होना था. शब्द विन्यास पर बात कर रहा हूँ.
भाव और संवेदना से पगी हुई आपकी इस उत्कृष्ट रचना को थोड़ा और कस रहा हूँ. विश्वास है आपका अनुमोदन मिलेगा -
एक बार फिर
इकट्ठा हो रही हैं वही ताकतें
एक बार फिर
सज रहे हैं मंच
एक बार फिर
जुट रही है भीड भूखे-नंगों की
एक बार फिर
सुनाई दे रहीं हैं ध्वंसात्मक धुनें
एक बार फिर
गूँज रही हैं फ़ौजी जूतों की थाप
एक बार फिर
धमक रहे हैं दंगाइयों, आतंकियों के पाँव
एक बार फिर
उठने लगी हैं लपटें
धुँए से काला हो गया है आकाश.. एकबार फिर.
एक बार फिर गुम हुए जा रहे हैं
मनसकोश से अच्छे-प्यारे शब्द
एक बार फिर
कवि निराश है, उदास है, हताश है...
सादर
मर्मस्पर्शी .. संवेदनशील मनुष्य की विवशता मुखर हुयी है ...
वाह बेहद गहन भाव पिरोये शानदार रचना आदरणीय बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
बाहरी बुरी ताकतों का, सामाजिक हालातों का प्रभाव जिस तरह कवि के संवेदनशील हृदय पर होता है ..इसे संदरता से व्यक्त किया है
सादर शुभकामनाएँ
आ0 अनवर भाई , हमेशा की तरह एक दमदार रचना !! बहुत बधाई !!
बहुत बढ़िया -
शुभकामनायें
आदरणीय-
नहा खून से हर हर गंगे |
बहा खून ले, दर दर दंगे |
भंग व्यवस्था लंगु प्रशासन
सड़कों पर दुर्दांत लफंगे ।
जब मारक आघात करें | बोलो किसकी बात करें ॥
जहाँ प्रवंचक प्रवचन करते ।
श्रोता मकु तरते ना तरते ।
लम्बी चौड़ी हांक हांक के
दारुण दुःख हरते ना हरते -
हरते सिया बलात धरें । बोलो किसकी बात करें ॥
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online