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ग़ज़ल नूर की - नशे में लाख रहूँ पर बहक नहीं सकता

१२१२ ११२२ १२१२ २२ (११२)
.

नशे में लाख रहूँ पर बहक नहीं सकता
लबों से तल्ख़ियाँ दिल की मैं बक नहीं सकता.
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मुझे ये डर है बयाबान में न खो जाऊं
मैं अपने आप में ज़्यादा भटक नहीं सकता.
.
कभी लगे है कि खुल कर मैं सामने आऊँ
तमाम ऐब लिए जिन को ढक नहीं सकता.
.
बुलन्दियों पे जो बैठे हैं उन को याद रहे   
कोई सितारा हमेशा चमक नहीं सकता.
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सफ़र ये “नूर” चलेगा ज़ुहूर होने तक
कई बदन हैं बदलने मैं थक नहीं सकता.
.
निलेश 'नूर'
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 27, 2024 at 9:47pm

धन्यवाद आ. रवि जी

Comment by Ravi Shukla on August 8, 2023 at 2:36pm

आदरणीय नीलेश जी शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर बधाई कुबूल करें 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 26, 2023 at 5:34pm
शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 25, 2023 at 3:36pm

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

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