For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-103 (विषय: उपहार)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-103 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय 'उपहार', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-103
"विषय: 'उपहार
अवधि : 30-10-2023 से 31-10-2023 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 706

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागत है

पंजीरी (लघुकथा):


"पांँच महीनों की रेगुलर फ़ीज़ियोथैरेपी का कमाल है न मम्मा? आज वीडियोकॉल में कितनी ख़ुश दिख रही हो!"
"न बेटा, उससे वैसा कोई ख़ास फ़ायदा नहीं दिखा!"
"तो फ़िर हर रोज़ की तेल मालिश हमजो करवा रहे हैं...उससे न, है न!"
"न बेटे, उससे भी वैसा असर तो नहीं!"
"तो फ़िर हम जो ऑनलाइन प्रोटीन भेजते हैं, उससे?"
'न बाबा, उससे भी वैसा फ़ायदा न मिला, जितना कि एक तोहफ़े से आई ये तब्दीली जो तुम महसूस कर पा रहे हो!"
"तोहफ़ा! कौन से तोहफ़े से? किसने भेजा?"
"कामवाली बाई ने दिया दिल्ली की दिलवाली का!"
"क्या दिया? बताओ न मम्मा!"
"सब कुछ... सभी किस्म की ज़रूरी 'मेवा'... सभी ज़रूरी 'पौष्टिक' चीज़ें... सभी ज़रूरी 'तहज़ीबी थैरेपियाँ'! कामवाली बाई की भाभीजी आईं थीं दिल्ली से! एक हफ़्ते रुकी यहाँ।"
"तो ऐसा क्या तोहफ़ा दे दिया उन्होंने?"
"तुम नहीं समझोगे बेटा? वह सब दिया जो मेरी जिस्मानी और रूहानी सेहत के लिये ज़रूरी था तुम्हारी सब दवाओं और थैरेपी से परे!"
"अच्छा! बता भी तो दो अब मम्मा!"
"कामवाली बाई की पढ़ी-लिखी भाभीजी ही मेरे लिये हर तरह की पंजीरी सा तोहफ़ा साबित हुई बेटा! उसकी 'अपडेटेड सेवा' वाली 'पंजीरी' ही मेरी सेहत और ख़ुशी की इस 'अपडेट' की वज़ह है, बेटा!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

आ. भाई शेखशहजाद जी, अभिवादन। अच्छी समसामयिक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।

अपनत्व भरा सानिन्ध्य हर दवा से बेहतर उपचार का काम करता है। यही जीवन में उमंग भरता है। इसी मर्म को बखूबी उकेरा है। पुनः बधाई

आदाब। आपने रचना के मर्म व संदेश पर  सार्थक टिप्पणी की और हमें प्रोत्साहित किया रचना पटल पर समय देकर। हार्दिक धन्यवाद जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब।

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी। बहुत सुन्दर लघुकथा।

उपस्थिति और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह जी।

शीर्षक - सी ई ओ
अरे शामु बात सुन हरीश ने बहुत प्यार से अपने दोस्त को आवाज़ दी , जो कॉलेज की केंटीन से निकलते वक्त उससे नज़रें चुरा कर क़तरा कर निकला जा रहा था , शामु न चाहते हुए भी मजबूरन मुड़ा अरे बड़े भैया आप , नमस्ते कैसे हैं आप आज कल दिखते ही नहीं , शामू ने बेहद संजीदगी से उनकी तरफ मुड़ते हुए खुशनुमा लहजे में जबाब दिया / अबे ओये !@#$ हरीश ने उसे एक प्यारी सी गाली देते हुए बोला इधर आ तो मैं बताऊं तुझे कल भी जब तू एक हसीना के साथ मोटर साइकल पे रेड लाइट पे रुका था तब भी मैने ही पीछे से काँधे पे थपकी दी थी और तू फटाक से सिग्नल तोड़ के निकल लिया था अबे चकर घिन्नी के / शामु शरमाने का दिखाबा करते हुए धीरे से बोला ओह भाई साहैब वो आप थे मैं समझा रमेश था सो उससे बचने को .... बाकी वाक्य शामू ने अधूरा छोड़ दिया / हरीश ने उसे पास बिठाते हुए एक खूबसूरत सा गिफ्ट पेक निकालते हुए उसे दिया और बोला चल छोड़ तू भी क्या याद करेगा तेरा जन्म दिन है आज और आज तुझे सब माफ़ / खोल के देख इसमें क्या है / शामु खुशी से अरे भाई साहब आप हमेशा मुझे कुछ न कुछ देते ही रहते हो , मैं आपका ये एहसान कैसे चुकाऊंगा / हरीश बोला ये एहसान चुकाने के लिए ही तुझे ये आखरी तोहफा दे रहा हूँ तू कुछ काबिल बन जाए तो मेरा फर्ज़ पूरा हो / शामु ने चुपचाप वो गिफ्ट पेक खोला उसमें एक लिफ़ाफ़ा था उसे खोला पढ़ा और एक दम से उसकी आँखे भीग गई , उसने नीचे झुक कर हरीश के पैर छू लिए फिर उसके सीने से लग कर बोला आपके जैसा इंसान अगर मेरी जिंदगी में न आता तो तो ये शामु किसी काम का न रहता / उस लिफाफे में शामु के लिए हरीश की कंपनी में सी ई ओ की पोस्ट के लिए ऑफर था / हरीश ने बोला मुझे तुझसे अच्छा सी ई ओ और कहाँ मिलेगा पगले और दोनो एक दूसरे के गले लग कर खूब ज़ोर से हँसे /
मौलिक अप्रकाशित 

सादर नमस्कार । विषयांतर्गत लेखन का बढिया अभ्यास। हार्दिक बधाई आदरणीयडॉ. अरुण कुमार शास्त्री जी। संवादों को इंवर्टेड कौमाओं में  सही तरह प्रस्तुत करना था;  वर्तमान स्वरूप में यह लघुप्रसंग या लघुकहानी जैसी भी लग रही है।

आदरणीय - शेख उस्मानी साहिब नमस्कार - जी मानना पड़ेगा आपने सही कहा - यकीनन मैं इनवर्टेड कोमा आदि की बेसिक कमी को स्वीकार करता हूँ उसके बिना दो व्यक्तियों के बीच के संवाद ठीक से चिन्हित नहीं हो पाते हैं - आपका दिल से शुक्रिया जनाब ।  

हार्दिक बधाई आदरणीय अरुण कुमार जी। बहुत सुन्दर प्रयास।

आ. भाई अरुण जी, अभिवादन। बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।

संयोग  - लघुकथा - 

सूरज अपने माँ बाप की एक मात्र संतान था। वह भी कितने पापड़ बेलने के बाद हुआ था। शादी के नौ साल बाद हुई औलाद से खुशी का जो माहौल होना चाहिये था, वह नहीं हुआ। क्योंकि सूरज न तो रंग रूप में सुंदर था। और ना ही बौद्धिक स्तर पर तेज था। कुल मिला कर वह कुरूप लगता था। उसमें कोई ऐसी बात नहीं थी, जिस पर माँ बाप गर्व कर सकते। 

असली समस्या तो तब हुई जब उसके लिये कोई अपनी लड़की देने को राजी नहीं होता था। धीरे धीरे उम्र भी खिसकती जा रही थी। सूरज लगभग चालीस के पास पहुंच चुका था। इस सब के बावजूद सूरज में एक ही विशेषता थी कि वह एक नेकदिल और  सेवा भावी व्यक्तित्व का मालिक था। 

अभी तीन दिन पहले उसके जीवन में एक घटना घटी। वह शाम को मंदिर से लौट रहा था । उसने सड़क पर एक बुजुर्ग व्यक्ति को बेहोश पड़े देखा। शायद कोई वाहन टक्कर मार गया था। सड़क सुनसान थी। लहूलुहान व्यक्ति को अगर कोई मदद नहीं मिलती तो कुछ भी अनहोनी होना संभव थी। ऐसा सोचकर सूरज ने तुरंत उस बुजुर्ग को अपने बलिष्ठ हाथों में उठा कर पास के चिकित्सालय में पहुंचाया। चूंकि उस बुजुर्ग के पास कोई ऐसा कागज पत्र नहीं मिला जिससे उसकी पहचान हो सके। अतः चिकित्सालय ने सूरज को ही उसकी देख भाल का उत्तरदायित्व संभला दिया। सूरज भी मन का भोला था अतः पूरे तन, मन और धन से उन बुजुर्ग की सेवा में लगा रहा ।चिकित्सालय का सारा खर्च भी सूरज ने ही वहन किया। चोट गंभीर थी, साथ ही उम्र भी अधिक थी अतः बुजुर्ग तीसरे दिन होश में आ सके। 

चिकित्सालय ने बुजुर्ग को उस युवक के सेवा भावी चरित्र का परिचय कराया। बुजुर्ग सारी बात सुनकर दंग हो गये। इसी बीच उनकी एक मात्र पुत्री भी चिकित्सालय आ पहुंची। वह भी पूरी दास्तान सुन कर भौचक्की रह गई। उन बुजुर्ग के परिवार में उस लड़की के अलावा और कोई नहीं था। 

उन बुजुर्ग ने सूरज को उसकी सेवा के बदले बहुत कुछ देने की पेशकश की लेकिन सूरज टस से मस नहीं हुआ। वह कुछ भी लेने को तैयार नहीं था। 

अचानक  आज वही बुजुर्ग अपनी बेटी सहित सूरज के घर आ धमके। सूरज ने उन लोगों को अपने माँ बाप से मिलाया।

"हम लोग एक विशेष प्रयोजन से आपके पास आये हैं। आशा है कि आप हमें निराश नहीं करेंगे। मेरी एक ही संतान है।इसकी माँ बहुत समय पहले गुजर गई। यह इसलिये शादी नहीं कर रही थी कि इसके बाद मेरी देखभाल कौन करेगा। लेकिन सूरज का यह सेवा भावी स्वरूप देख कर इसका हृदय परिवर्तन हो गया है। यदि आप लोग स्वीकार करें तो यह सूरज से शादी करना चाहती है।" 

मौलिक एवं अप्रकाशित

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service