परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 126वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले "
2122 1122 1122 22
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़इलुन/फ़ेलुन
बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ रूप
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 दिसंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आ0 बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई आपको ।
बहुत बहुत शुक्रियः आद.नवीन जी
मुहतरमा राजेश कुमारी जी आदाब, शानदार मतले के साथ अच्छी ग़ज़ल का आग़ाज़ किया है आपने, मुबारकबाद पेश करता हूँ।
'शक़्ल पाता कोई ज़ेवर भी फ़क़त जलने पर,
ग़ौर करें कि ज़ेवर जलने पर नहीं बल्कि धातु घडने और तपने पर ज़ेवर की शक्ल पाती है और वैसे भी जलने के साथ फ़क़त का इस्तेमाल ग़ैर वाजिब है।
'खोल दूँ सच कोई इल्ज़ाम से पहले पहले'. खोलने के लिए राज़ होना होगा लिहाज़ा यहाँ 'बोल दूँ सच' मुनासिब रहेगा।
'देखकर बज़्म में तेरी कईं ओछे महमाँ,' महमाँ के साथ 'ओछे' लफ्ज़ मुनासिब नहीं है मिसरा यूँ कर सकते हैं :
'बज़्म में तेरी कई लोग जो ओछे देखे' 'कई' में बिन्दु नहीं होना चाहिए। सादर।
मोहतरम ग़ज़ल पसंद करने का और इस्सलाह से नवाज़ने का बहुत बहुत शुक्रियः।
लिखते हुए मैं भी सोच रही थी कि ज़ेवर लिखूँ या सोना लिखूँ आपकी प्रतिक्रिया के बाद सोना ही सही रहेगा।फ़क़त का एक अर्थ सिर्फ़ भी होता है उसी भाव में लिया है।आपकी इस्सलाह का तहे दिल से स्वागत है।
शक़्ल ज़ेवर की मिले जलने पे ही सोने को
ऐसा कर लिया है
आदरणीय राजेश कुमारी जी, नमस्कार
बहुत खूब ग़ज़ल कही
बधाई स्वीकार कीजिए।
आदरणीया राजेश कुमारी दी
सादर अभिवादन
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें
आदरणीया राजेश कुमारी जी नमस्ते, ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। उम्दः ग़ज़ल हुई है। शैर दर शैर बधाई निवेदित करता हूँ।
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें
मोहतरमा राजेश कुमारी जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत-बहुत बधाई
2122, 1122, 1122, 22
1)इतनी रग़बत तो न थी काम से पहले पहले
लौट तुम आते थे घर शाम से पहले पहले
2)आज क्यों तुमसे मेरा नाम लिया जाता नहीं
थी मुहब्बत बड़ी इस नाम से पहले पहले
3)आग के दरिया से अब दिल को नहीं लगता डर
हम डरा करते थे अंजाम से पहले पहले
4) दर्द सा उठता है उस ओर चले जाएं तो
थी मोहब्बत हमें जिस बाम से पहले पहले
5) हाल ये है तेरा एक ख़त भी नहीं आता अब
तेज़ था यार तू पैग़ाम से पहले पहले
6)आने वाली है तबाही ये समझ जाना था
कैसा सन्नाटा था कोहराम से पहले पहले
गिरह
फ़िक्र उसको मेरी कितनी है मेरे घर देखो
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले
मौलिक अप्रकाशित
आ0 अनीस साहब बेहतरीन ग़ज़ल हुई बधाई आपको ।
तीसरे शेर में रब्त और बेहतर हो सकता है । जो डरा करता था अंजाम से पहले पहले ।
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