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अरसे से तेरी याद मे जिंदा हूँ,करूँ अब ओर इंतज़ार कैसे
हर कसम इश्क़ की तोड़ी है तूने,करूँ तेरे नये वादे पे ऐतबार कैसे

ये जो जख्म हैं सीने पे मेरे, इक नाज़ुक कली ने दिए हैं मुझे
काँटों के बीच खिले इस गुलाब से अब मैं करूँ प्यार कैसे

ना हो वो बदनाम मेरे नाम के साथ, ओढ़ ली इसलिए गुमनामी मैने
अब तुम ही बताओ लाउ उसका नाम ज़ुबान पर भरे बाजार कैसे

दियों की तरह अरसे से जला रखा हे दिल दुनिया उसकी रोशन करने को
आँखो मे आँसू लेकर अब ओर मनाउ दीवाली का यह त्योहार कैसे

तोड़ा मंदिर इक ने तो दूजे ने भी उजाड़ी थी मज्ज़िद यहाँ
मान लूँ फिर किसी इक को ही मैं अब गुनहगार कैसे

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 20, 2010 at 11:54am
तोड़ा मंदिर इक ने तो दूजे ने भी उजाड़ी थी मज्ज़िद यहाँ
मान लूँ फिर किसी इक को ही मैं अब गुनहगार कैसे,
achhi rachna hai, baaki chijey dhirey dhirey OBO key baristh sahityakaro key sampark mey aaney sey sahi ho jayeyngey, badhiya prayash, likhtey rahiyey,
Comment by Pallav Pancholi on June 18, 2010 at 11:39pm
राणा जी..... प्रशंसा ह्यू आभार........ आपकी बात का ध्यान राजूंगा
Comment by Pallav Pancholi on June 18, 2010 at 11:38pm
बबन जी प्रशंसा हेतु धन्यवाद.......

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 18, 2010 at 6:26pm
सुन्दर भाव एवं सार्थक सोच..........मन की गहराई से डूब कर लिखी गई प्रतीत होती है...........ग़ज़ल के शिल्प पर थोड़ा ध्यान दे..आनंद मिलेगा.......धन्यवाद.
Comment by baban pandey on June 18, 2010 at 7:15am
ये जो जख्म हैं सीने पे मेरे, इक नाज़ुक कली ने दिए हैं मुझे
काँटों के बीच खिले इस गुलाब से अब मैं करूँ प्यार कैसे
वाह ..भाई , दूध का ज़ला मट्टा भी फूंक कर पीता है ...बहुत ही अच्छे

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"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
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