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शौक है , अजीब लगता है,

दर्द कोई  रकीब लगता है !

रोज तरसा है मुस्कुराने को 

चेहरे-चेहरा गरीब लगता है !

ये गम हैं कि छोड़ते ही नहीं 

कोई रिश्ता करीब लगता है !

होगा खुशियों का खज़ाना कोई  
हमको अच्छा सलीब लगता है !

नभ के तारे सभी हमारे हैं ,

यही अपना नसीब लगता है !
_____________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by vandana on July 2, 2013 at 7:33am

रोज तरसा है मुस्कुराने को 

चेहरे-चेहरा गरीब लगता है !

ये गम हैं कि छोड़ते ही नहीं 

कोई रिश्ता करीब लगता है !

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 2, 2013 at 7:17am

सुन्दर मुक्तिका 

नभ के तारे सभी हमारे हैं ,

यही अपना नसीब लगता है !..........वाह !

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 1, 2013 at 7:48pm

मन भावन गीत रचना बहुत सुन्दर लगी, हार्दिक बधाई श्री विशम्भर शुक्ल जी, सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 1, 2013 at 1:19pm

बहुत ही सुकोमल भाव लिए सुन्दर रचना आदरणीय हार्दिक स्वीकारें.

Comment by Aarti Sharma on July 1, 2013 at 1:03pm

दिल को छुते हुए मार्मिक भाव...बहुत खूब सर

Comment by विजय मिश्र on July 1, 2013 at 12:07pm
भाव से भरी , दर्द दुश्मनों जैसा और गम से रिश्ता करीब का और इसे नाम दिया अजीब शौक का . यह छोटी सी कविता कितने मर्मस्पर्शीता को समेटे है स्वेम में ठीक कवि के विशाल हृदय की तरह . बधाई हो विश्वम्भरजी
Comment by रविकर on July 1, 2013 at 10:27am

बहुत बहुत बहुत बढ़िया -

शुभकामनायें आदरणीय-

Comment by vijay nikore on July 1, 2013 at 1:13am

भाव मन को छू गए।

बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by Harish Upreti "Karan" on June 30, 2013 at 12:49pm

अति सुन्दर सर बधाई........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2013 at 1:52am
आदरणीय..विश्वम्भर शुक्ल जी, बेहद खूबसूरत पंक्तिया व रचना अभिव्यक्ति 'हार्दिक शुभकामनाऐ

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