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एक बंजर व्योम तो हम पर तना है !

अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,

उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है !

मिले उनको हर्ष के बादल घनेरे ,
एक बंजर-व्योम तो हम पर तना है !

चित्र है उत्कीर्ण कोई चित्त पर ,
ठहर जाती जहां जाकर कल्पना है !

सूर्य की ये रश्मियाँ बंधक बनीं हैं 
एक अंधी कोठरी मे ठहरना है !

रास्ते अब स्वयं ही थकने लगे हैं 
पूछता गंतव्य मन क्यों अनमना है ?

_______________________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल 

 (मौलिक और अप्रकाशित )


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Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 10:37pm

इसी नाम से छंद है गीतिका. आप जानते ही हैं आदरणीय. खैर ..

इस मंच पर पहले भी कई-कई बार इन विन्दुओं पर यानि गीतिका को लेकर परिचर्चा हो चुकी है. और सार्थक उत्तर कभी नहीं मिल पाया है.

आप मेरे कहे का बुरा न मानें, आदरणीय तो कहूँ.  कि, मात्रिकता और वर्णिक स्वरूप के हिसाब से रचना विधान भी सधना चाहिये. फिर तो इसे कविता ही रहने दें जो शब्द-संयोजन के हिसाब से चलती है और गेयता का अत्यंत संतुष्टिदायक निर्वहन करती है. हम फिर ग़ज़ल के आवरण को क्यों ढोयें ? किसी बड़े नाम ने कोई प्रयोग किया तो वह प्रयोग अनुमन्य ही हो ऐसा हर बार नहीं होता. वह भी तब जब उस प्रयोग के कई विधान सम्बन्धी तथ्य प्रश्नवाचक घेरे में हों.

ग़ज़ल के आवरण से हटते ही सारे भ्रम दूर हो जायेंगे. उर्दू अदब मे भी कई-कई नामचीन ग़ज़लकार बेबह्र ग़ज़लें कहते हैं लोग उन्हें जानते भी हैं.  लेकिन हिन्दी में ऐसी परिपाटी नये रचनाकारों को भ्रम में डालती है और कहने वालों को हिन्दी ग़ज़लकारों के विरुद्ध मौका. 

दूसरे, जब हम छंद शास्त्र और उसके दुरूह विधान साध सकते हैं तो फिर हिन्दी वर्णमाला के आलोक में ग़ज़ल क्यों नहीं ? क्यों अनावश्यक बैसाखी का सहारा लिया जाय ? ग़ज़ल से सम्बन्धित आलेख और रिपोर्ट आप भी अवश्य पढते होंगे.

मेरा इतना ही निवेदन है.

सादर

Comment by रविकर on July 2, 2013 at 7:58pm

विमर्श से सौ प्रतिशत सहमत-
सुन्दर गीतिका-

Comment by रविकर on July 2, 2013 at 7:56pm

बना अनमना थका सा, हुआ भावना सून |
वाह वाह क्या बात है, पत्थर मन मजमून ||

आभार आदरणीय डाक्टर साहब ||
बधाईयाँ इस निर्दोष प्रस्तुति पर-

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:52pm

बंधुवर  Ram Shiromani Pathak जी आपका ह्रदय से आभार !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:50pm

अमन कुमार जी सादर सस्नेह आभार आपका 

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:50pm

गीतिका 'वेदिका'जी आपकी सराहना की टिप्पणी का सस्नेह आभारी हूँ ,वंदन !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:49pm

मित्र अरुण शर्मा 'अनंत' जी से क्षमा ,आभार व्यक्त करते समय पूरा नाम टंकित होने से रह गया 

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:47pm

मित्रवर अरुण कुमार 'अनंत' जी आपकी स्नेहिल दृष्टि का आभार !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:44pm

आपका हार्दिक आभार सप्रेम वीनस केसरी जी !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:43pm

आभार मित्र Jitendra Pastariya JII !

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