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ग़ज़ल - यूँ मुहब्बत हो गई है

2122 2122

यूँ मुहब्बत हो गई है
गोया आफ़त हो गई है

बिन बताये जा रही हो
इतनी नफ़रत हो गयी है?

तुम भी चुप हो, मैं भी चुप हूँ
एक मुद्दत हो गयी है

नींद क्योंकर आए हमको?
अब तो उल्फ़त हो गयी है

पास मेरे आ गयी तुम
थोड़ी राहत हो गयी है

यूँ ख़ुदी से लड़ रहा हूँ
ज्यूँ बग़ावत हो गयी है

'ज़ैफ़' उसके जाते ही ये
क्या क़यामत हो गयी है!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Devesh Kumar on November 10, 2022 at 12:41pm

वाह , बहुत खूब ।

Comment by Zaif on November 8, 2022 at 4:47am

बहुत आभार आदरणीय महेंद्र जी और ब्रज जी।

Comment by Zaif on November 7, 2022 at 10:49pm

आदरणीय समीर सर, बहुत शुक्रिया आपका। आगे से ध्यान रखूंगा। आभार।

Comment by Samar kabeer on November 5, 2022 at 6:48pm

जनाब ज़ैफ़ जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें I 

जनाब महेन्द्र कुमार जी की बात पर ध्यान दें I 

एक बात ध्यान में रखें कि ग़ज़ल में किसी भी तरह के विराम चिन्हों का प्रयोग नहीं किया जाता  I 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 4, 2022 at 9:53pm

बढ़िया ग़ज़ल कही भाई जैफ...हार्दिक बधाई

Comment by Mahendra Kumar on November 4, 2022 at 10:02am

बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है आदरणीय ज़ैफ़ जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। मतले में "गई" है और बाकी अशआर में "गयी"। कृपया ध्यान दें और दोनों में से किसी एक का ही पूरी ग़ज़ल में प्रयोग करें। 

Comment by Zaif on November 3, 2022 at 11:41pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय अमीर सर। बहुत आभार।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 31, 2022 at 5:22pm

आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ख़ूबसूरत अहसासात से लबरेज़ उम्द: ग़ज़ल कही है आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

Comment by Zaif on October 31, 2022 at 2:07pm

बहुत बहुत शुक्रिया, रवि भसीन 'शाहिद' जी..

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on October 31, 2022 at 11:21am

आदरणीय जैफ़ साहिब, आदाब। छोटी बह्र में आपने बहुत उम्द: ग़ज़ल कही है, इस पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल कीजिये!

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