अगर है एक तो है एक हिंदुस्तान हिंदी सेI
ज़माने में बनी है हिंद की पहचान हिंदी सेI
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ये दुनिया एक ही कुनबा सदा इसने सिखाया है,
मोहब्बत का सदाक़त का मिला वरदान हिंदी सेI
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जो तुलसी जायसी के लाल, अंग्रेजी के अनुयायीI
उन्हें तुम दूर ही रखना मेरे भगवान हिंदी सेI
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तुम हिंदी काव्य को रसहीन होने से बचा लेना,
नहीं तो फिर न निकलेगा कोई रसखान हिंदी सेI
ये उर्दू फ़ारसी अब तक दिवंगत हो गई होतीं,
मिला भारत में दोनों को ही जीवनदान हिंदी सेI
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मेरे दाता वो मेरी जिंदगी का आखरी दिन हो,
जरा भी दूर हो जिस पल मेरी संतान हिंदी सेI
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी,
लाज़वाब, रसदार, मज़ेदार प्रस्तुति।
मुहतरम योगराज प्रभाकर जी आदाब, हिन्दी दिवस के अवसर पर शानदार प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ और इस रचना को ओ बी ओ के फ़ीचर ब्लॉग में शामिल होने की कामना करता हूँ। सादर।
//रचना के आगे 'कविता' शब्द जोड़ दिया है//
इसे कहते हैं उस्तादी:-)))
रचना के आगे 'कविता' शब्द जोड़ दिया है आ० समर कबीर जी.
// मैं उस मिसरे की बह्र जरूर देखता अगर मैंने यह रचना ग़ज़ल लिखकर पोस्ट की होती.//
फिर ये रचना कौन सी विधा में है मुहतरम? इंगित मिसरे को छोड़कर सभी मिसरे 1222 1222 1222 1222 के वज़्न पर पूरे उतरते हैं ।
हार्दिक आभार आ० लक्ष्मण धामी मुसाफिर भाई जी.
आपकी इस उस्तादाना राय के लिए तह-ए-दिल से ममनून हूँ आ० समर कबीर साहिब. मैं उस मिसरे की बह्र जरूर देखता अगर मैंने यह रचना ग़ज़ल लिखकर पोस्ट की होती.
आ. भाई योगराज जी, सादर अभिवादन। हिन्दी दिवस पर बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब, हिन्दी दिवस पर अपने जज़्बात की अक्कासी करती अच्छी ग़ज़ल कही आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'तुम हिंदी काव्य को रसहीन होने से बचा लेना'
इस मिसरे की बह्र चेक कर लें ।
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