For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल -7 ( गरीबों की लाशों में ढूंढें ख़ज़ाना)

122 122 122 122


हक़ीक़त न बोले बनाये फ़साना
अज़ब ये तरक्की अज़ब है ज़माना //१

नहीं आज उसमें ज़रा सी भी शफ़क़त
ग़रीबों की लाशों में ढूंढे ख़ज़ाना //२

सँवारा जिसे था बड़ी आरज़ू से
बुढ़ापा में छीना वही आशियाना //३

ज़रूरी कहाँ है गिराना ज़मीं पे
है काफ़ी उसे बस नज़र से गिराना //४

गुलों की तरह है मेरे दिल की हसरत
मसल दो न छोड़े ये ख़ुशबू लुटाना //५

क़मर जाने कब से भटक ही रहा है
तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना //६

-- क़मर जौनपुरी

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2018 at 4:13pm

आ. भाई कमर जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on November 25, 2018 at 12:49pm

जनाब कमर साहब  समर साहब की बाते बहुत उपयोगी है क्रपया समझिये । समर साहब का आभार जो हम नौसिखियो को वे इतना वक्त देते है

Comment by क़मर जौनपुरी on November 22, 2018 at 12:03am
बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब।
आपकी इस्लाह सर आंखों पर।
शह्र के मामले में आपकी नसीहत भी सर आंखों पर। दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी।
Comment by Samar kabeer on November 21, 2018 at 11:19pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कहे ना हक़ीक़त बनाये फ़साना
किया है तरक़्क़ी अज़ब ये ज़माना'

मतला यूँ करें :-

'हक़ीक़त न बोले बनाये फ़साना

अजब ये तरक़्क़ी अजब है ज़माना'

नहीं रूह में अब ज़रा सी भी शफ़क़त',

इस मिसरे को यूँ करें:-

'नहीं आज उसमें ज़रा सी भी शफ़क़त'

' जो आया बुढ़ापा छिना आशियाना '

इस मिसरे को यूँ करें:-

'बुढ़ापे में छीना वही आशियाना'

' हमें भी खुशी से मचलना सिखा दो
सिखा दो हुनर प्यार को भूल जाना'

ये शैर भर्ती का है ।

छटे शैर के दोनों मिसरों में रब्त(ताल-मेल)नहीं है ।

' क़मर राह में बस भटक ही रहा है
शहर दर शहर ढूंढे तेरा ठिकाना'

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,और सानी पर चर्चा हो चुकी है,इस शैर को यूँ कर लें:-

'क़मर जाने कब से भटक ही रहा है

तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना'

Comment by Samar kabeer on November 21, 2018 at 10:44pm

//क्या यह ग़ज़ल के क्षेत्र में बड़ा दोष है या चलने लायक है।//

'शहर' आम बोल में वो लोग बोलते हैं जिन्हें भाषा की शुद्धता के बारे में पता नहीं होता,लेकिन ग़ज़लकार को ये ज़ेब नहीं देता कि वो शुद्ध शब्द को छोड कर अशुद्ध को अपनाए,दूसरी बात ग़ज़ल कोई खेल नहीं है,ग़ज़ल जिस भाषा की विधा है,उसी के विधान को अपनाना होगा,किसी ने कुछ ग़लत किया हो तो उसका उदाहरण देकर ख़ुद ग़लती करना मूर्खता होगी ।

शुद्ध शब्द है "शह्र" और इसका वज़न है 21,लेकिन कई लोग इसे शहर12 के वज़न पर एक ग़लती करने वाले का हवाला देकर धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं,लेकिन जो अच्छे ग़ज़लकार हैं वो इसे 21 ही लेते हैं, ये किसी भी ग़ज़लकार के लिये मुश्किल नहीं होता कि वो इसे 21 पर बाँधे, लेकिन जान बूझ कर ऐसा करने वाले मेरी नज़र में हठधर्म हैं,फैसला आपको करना है कि आप किसे अपनाते हैं ।

आप चाहें तो आख़री शैर का सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं :-

'तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना'

Comment by क़मर जौनपुरी on November 21, 2018 at 5:36pm
हौसला आफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जनाब तेज वीर सिंह साहब।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 21, 2018 at 3:02pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कमर जौनपुरी जी। बेहतरीन गज़ल।

ज़रूरी कहाँ है गिराना ज़मीं पे
है काफ़ी उसे बस नज़र से गिराना //

Comment by क़मर जौनपुरी on November 21, 2018 at 11:40am
बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा।
हिंदी के हिसाब से शहर ही लिखा हूँ क्योंकि इसका उच्चारण शहर ही होता है।
आपकी टिप्पणी से दुष्यंत कुमार जी की बात याद आ गई। उन्होंने कहीं लिखा था कि उनके दोस्त कहते थे कि शह्र होता है लेकिन मैं हिंदी में उच्चारण के हिसाब से ही प्रयोग करता हूँ, शहर।
कहाँ तो तय था .....हर एक घर के लिए।
कहाँ चिराग ......... शहर के लिए।.. दुष्यंत कुमार
चूंकि मैं भी हिंदी में लिखता हूँ, हां बहुत से उर्दू लफ्ज़ों का इस्तेमाल होता है।
इसलिए मैं ऐसी गुस्ताखी कर बैठता हूँ। अब विद्वानों से जानना चाहूंगा कि क्या यह ग़ज़ल के क्षेत्र में बड़ा दोष है या चलने लायक है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2018 at 11:02am

वाह्ह्ह बहुत  अच्छी ग़ज़ल कही है क़मर साहब दाद प्रेषित है मकते में शह्र को शहर लिखा है आपने ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service