For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विवशतायें (लघुकथा) :

बहाव को रोकने के लिये किसी भी प्रकार के बंध या बंधन काम नहीं आ पा रहे थे। तेज बहाव के बीच एक टीले पर कुछ नौजवान अपनी-अपनी क्षमता और सोच अनुसार विभिन्न पोशाकें पहने, विभिन्न स्मार्ट फ़ोन, कैमरे और दूरबीनें लिए हुए बहती तेज धाराओं के थमने या थमाये जाने; बचाव दल के आने या बुलवाये जाने; नेताओं, मंत्री, यंत्री, धर्म-गुरुओं अथवा विशेषज्ञों के दख़ल करने या करवाने के भरोसे, प्रतीक्षा और शंका-कुशंकाओं के साथ माथापच्ची करते हुए एक-दूसरे के हाथ थामे खड़े हुए थे। कोई तटों की ओर देख रहा था, तो कोई आसमां की ओर!


बहुत ही तेज़ धाराओं के साथ भयंकर बहाव जल का था, वैश्वीकरण का, आधुनिकता का, उच्च तकनीकों-डिजीटलीकरण का था या लोकतांत्रिक व्यवस्था का था या अलोकतांत्रिक का या सामंतवाद, आतंकवाद, नशाखोरी, तानाशाही या कट्टरपन, योजनाओं अथवा बड़बोलेपन या धर्मांधता का! जो भी हो; नौजवानों के लिए रोमांचक था, चुनौती था, आनंददायक था या रोबोटिक अहसास था। टीला भी कोई विकास था, उच्च ओहदा या मुकाम था; लक्ष्य था या दिवास्वप्न था! बंध या बंधन कोई उच्च तकनीक का बांध था या भ्रष्टाचार; बेरोज़गारी थी, अशिक्षा थी, उच्च शिक्षा थी या परिवार या समाज या धर्म था; नीति थी, आदर्श थे, पाखंड या अंधविश्वास था! जो कुछ भी हो! नौजवान हैरान-परेशान से थे। कुछ युवक थे, कुछ युवतियां थीं! तो कुछ थर्ड-जेंडर या समलैंगिक! कुछ एक बहुत ग़रीब थे, तो कुछ बहुत अमीर और अधिकतर तो मध्यम वर्ग के ही थे! लगभग ऐसे ही दृश्य तटों पर भी थे। ये तट स्थायी रोज़गार थे या अस्थायी; जुगाड़ थे, उद्योगपतियों के व्यापार थे या राजनीति या धर्म के ठोस स्तंभ; पैतृक धन-सम्पत्ति थी या देश की सम्पदा! जो कुछ भी हो! नौजवानों को उन पर अटूट विश्वास था!


तेज़ धाराओं के बहाव के बीच टीले वालों और तट वालों के बीच स्मार्ट फ़ोनों आदि से सम्पर्क बना हुआ था। चर्चाएं जारी थीं। वादे किये जा रहे थे। रेस्क्यू ऑपरेशन की संभावनाएं कभी बढ़ रहीं थीं, तो कभी कम हो रहीं थीं।


कुछ जोशीले युवा जो तैरना जानते थे, बेसब्री से लहरों में कूंद गये। उनमें से कुछ तट पा गये, तो कुछ मौत! सब्र रखते हुए ढलती शाम में भी शेष युवा चुनौतियों को स्वीकार कर रहे थे संभावित नतीज़ों की कल्पनाओं में खोये हुए अपने-अपने फ़ैसले या चुनाव पर चिंतन-मनन कर रहे थे।


"देखो, किसी दमदार मंत्री से सम्पर्क करो या उद्योगपति से या फ़िर किसी दलाल या बड़ी पहुंच वाले आतंकी से! कोशिश करो हमारे रेस्क्यू की किसी न किसी जुगाड़ से!" टीले पर खड़े एक दमदार युवा ने फ़ोन पर तट पर खड़े एक बड़े नेता से कहा।


"हम कोशिश कर रहे हैं बारी-बारी से उन सभी लिंक्स का चयन करके! चुनाव का समय है। कोई न कोई तो पहल करेगा ही! जस्ट वेट!" दूसरी तरफ़ से जवाब आया।


शेष नौजवान वार्तालाप या ऑनलाइन-चैटिंग सुन रहे थे; या स्मार्ट फ़ोनों पर समाचारों के अपडेट्स सुन या देख रहे थे; सपने बुन रहे थे। कुछ ज़िन्दगियाँ ऑनलाइन थीं; कुछ ऑफ़लाइन! धैर्य और इंतज़ार के चुनाव की विवशता थी!


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 473

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2019 at 6:44pm

आदाब। मेरी इस रचना पर भी समय देकर अपनी राय से अवगत कराने और मुझे यूं प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नीता कसार साहिबा।

Comment by Nita Kasar on April 22, 2019 at 4:13pm

फिर कोई उपाय भी नही था जीवन बचाने की विवशता थी ,आनलाइन,आफलाइन बस मूकदर्शक थे विवशता ऐसी भी ।बधाई कथा के लिये आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 19, 2019 at 11:58am

आदाब। मेरी इस रचना के अवलोकन और प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहिब, आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब और आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 16, 2019 at 7:40pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 16, 2019 at 5:58pm

जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब, सीख देती उम्दा लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

Comment by Samar kabeer on April 16, 2019 at 2:59pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तमाम जी, हार्दिक आभार।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service