For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डाटा रिकवरी! (लघुकथा) :

कई दिनों से टल रहा काम निबटा कर, थके-हारे मिर्ज़ा मासाब अपने अज़ीज़ दोस्त पंडित जी के साथ अपने घर वापस पहुंचे। अपनी नाराज़ बेगम साहिबा को कुछ इस अंदाज़ में देखने लगे कि बेगम का ग़ुस्सा फ़ुर्र से उड़ गया!


"क्या बात है पंडित जी! आज ये हमें इस तरह क्यूँ घूर रहे हैं!" कुछ शरमा कर मुस्कराते हुए बेगम ने अपने पल्लू की आड़ लेकर कहा।


"डाटा रिकवरी करवा कर आये हैं मिर्ज़ा जी के लेपटॉप की!" पंडित जी ने दोस्त का कंधा दबाते हुए कहा।


"अच्छा! वो तो बहुत बढ़िया किया आपने। बहुत परेशां रहते थे एक ड्राइव लॉक करके पासवर्ड वग़ैरह सब भूलकर! लेकिन मुझे क्यूं ऐसे देख रहे हैं ये इतने सालों बाद!" बेगम ने अबकी बार बिना किसी शरम और लिहाज़ के वही सवाल दोहराया।


मिर्ज़ा जी चुप्पी साधे हुए बस मंद-मंद मुस्करा रहे थे। सो पंडित जी ही कुछ यूं बताने लगे सारा माज़रा :


"भाभीजान, हुआ ये कि इनके लेपटॉप की उस लॉक्ड ड्राइव की डाटा रिकवरी कराने जहां मैं इन्हें ले गया, वहां की एक ख़ूबसूरत, जवां और मॉडर्न कर्मचारी के हाथों में मेंहदी और कलाइयों में राजस्थानी सी ढेर सारी चूड़ियां और कड़े देखकर इन्हें आपसे निकाह के पहले के लव-अफ़ेअर और बाद के दिनों की याद ताज़ा हो गई! वहां ये जनाब उसे भी ऐसे ही घूर रहे थे! वो तो मैंने इनका कंधा दबाकर इनका सिर दूसरी कर्मचारी की तरफ़ घुमा दिया, ...वरना!" इतना कहकर पंडित जी ज़ोर से हंसने लगे।


"तो वो क्या नई-नई शादीशुदा थी!"


"नहीं, भाभीजान! वो तो बेहद फ़ैशनेबल कुंवारी लड़की थी। माथे पर बिंदी लगाये, कानों में भारी बालियां पहने छोटे कपड़े पहने हुए थी! इतरा रही थी एकदम रिमिक्स्ड आइटम!" पंडित जी को यूं बोलते देख मिर्ज़ा मासाब उन्हें इशारे से चुप होने को कहते रहे, लेकिन सब बेकार।


बेगम साहिबा तुरंत अपनी ड्रेसिंग टेबल की ओर गईं और अपनी शक्ल और बदन का मुआयना सा करने लगीं। मुरझाया सा झुर्रीदार चेहरा, रूखी-सूखी चमड़ी और बुढ़ापे की दस्तक उनकी आंखों को नम करने लगे।


तभी अंदर जाकर पीछे से मिर्ज़ा साहिब ने उन्हें बाहों में लेकर कहा, "वहां उस लड़की के हाथों, मेंहदी, कलाइयों और चूडियों-कड़ों से तुम्हारी डाटा रिकवरी करने लगा था बेगम! वाकई आज मुझे तुम उन दिनों वाली वैसी ही मेरी मेहबूबा नज़र आ रही हो!"


तभी बैठक-कक्ष से पंडित जी ने खांसते हुए कहा, "अच्छा, अब चलता हूं; दुआओं में याद रखना!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 19, 2019 at 11:57am

आदाब। मेरी इस रचना के अवलोकन और प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहिब, आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीय विजय निकोर साहिब और आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 16, 2019 at 6:02pm

जनाब भाई शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब, अच्छी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

Comment by Samar kabeer on April 16, 2019 at 2:45pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 16, 2019 at 11:58am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by vijay nikore on April 16, 2019 at 11:19am

// "वहां उस लड़की के हाथों, मेंहदी, कलाइयों और चूडियों-कड़ों से तुम्हारी डाटा रिकवरी करने लगा था बेगम! वाकई आज मुझे तुम उन दिनों वाली वैसी ही मेरी मेहबूबा नज़र आ रही हो!"//...

इन पंक्तियों ने  तोआँखों को नम कर दिया।

वाह, सच में बहुत ही ज़ोरदार लघु कथा लिखी है , भाई शेख उस्मानी जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service