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फ़ना के बाद भी अपनी निशानी छोड़ आये हैं ।
जिसे तुम याद रक्खो वो कहानी छोड़ आए हैं ।।

सुकूँ मिलता हमें कैसे यहां परदेश में आकर ।
विलखती मां की आंखों में जो पानी छोड़ आये हैं ।।

कलेजा मुँह को आता है जरा माँ बाप से पूछो ।
जो घर से दूर जा बेटी सयानी छोड़ आये हैं ।।

हमें इंसाफ का उनसे तकाज़ा ही नहीं था कुछ ।
अदालत में तो हम भी हक़ बयानी छोड़ आये हैं ।l

तेरे प्रश्नों का उत्तर था तेरे लहजे में ही लेकिन।
शराफ़त के लिए हम बदज़ुबानी छोड़ आये हैं ।।

यहां सब मुन्तज़िर हैं शेर का ऊला कहेगा तू ।
जो तेरी डायरी में एक सानी छोड़ आये. हैं ।।

ये कैसा हिज़्र का आलम यहां तो शब भी क़ातिल है ।
कहाँ हम वस्ल की रातें सुहानी छोड़ आये हैं ।।

मेरी पहचान खारिज़ कर गए मजबूर होकर वो ।
जो मेरे शह्र में यादें पुरानी छोड़ आये हैं ।।

पड़े निन्यानबे के चक्करों में हम यहाँ जब से ।
तभी से दोस्तों की मेजबानी छोड़ आये हैं ।।

बड़े चर्चे हैं साहब आपके उस शह्र में बेशक़ ।
वहाँ क्या आप भी कुछ लन्तरानी छोड़ आये हैं ।।

वही शायर दिलों पर राज करते आ रहे अब तक ।
जो अपने शेर में दिलकश रवानी छोड़ आये हैं ।।

समझ आता नहीं कुछ भी उसे यूँ बारहा पढ़कर ।
के हम हुस्नो अदा की तर्जुमानी छोड़ आये हैं।।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2019 at 8:39pm

आ0 सुशील सरना साहब हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2019 at 8:38pm

आ गुरुदेव कबीर साहब हार्दिक आभार और नमन ।

Comment by Sushil Sarna on February 12, 2019 at 8:00pm

फ़ना के बाद भी अपनी निशानी छोड़ आये हैं ।

जिसे तुम याद रक्खो वो कहानी छोड़ आए हैं ।।

सुकूँ मिलता हमें कैसे यहां परदेश में आकर ।

विलखती मां की आंखों में जो पानी छोड़ आये हैं ।।

वाह आदरणीय डॉ नवीन मणि त्रिपाठी जी वाह इतने खूबसूरत अशआर कहने के लिए दिल की गहराईयों से बधाई कबूल फरमाएं सर।

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