For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"जा..जा..जा!" (लघुकथा)

"सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु । ... सर्वेषां शान्तिर्भवतु । ... सर्वेषां पूर्नं भवतु । ... सर्वेषां मड्गलं भवतु ॥" इस 'वैश्विक-प्रार्थना' के स्वर जब उसने सुने तो उसकी आंखों में आंसू आ गए।

"तुम कौन हो? इतने भव्य मुकाम पर चमकते हुए भी यूं क्यूं रो रहे हो" उसके कंधे पर स्वयं को संतुलित करते हुए 'प्रार्थना' गाने वाले 'शान्ति' के प्रतीक ने कहा।

"मैं... मैं हूं विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति.. सुनहरी मूर्ति.. सरदारों की सरदार! .. पर तुम अपने काम छोड़कर यहां कैसे?" आंखों से कुछ और अश्रु लुढ़काते हुए उसने कहा।

"भगा दिया उन्होंने मुझे.. उड़ा दिया हर साल की तरह! साथियों से बिछड़ कर यहां आ पहुंचा! बहुत थक गया हूं! अब शान्ति का प्रतीक कहलाना भी मुझे नहीं पुसाता!" अपने सफ़ेद शरीर पर सिर घुमाकर, निहार कर कर वह मूर्ति से बोला!

"ऐ कबूतर! उतर मेरे कंधे से! देर मत कर! शान्ति क़ायम नहीं करा सकता, तो मेरे वतन में एकता क़ायम करा! कहना सरदार पटेल ने भेजा है! देशवासियों के दिलों के टुकड़े मत होने दो! अब तो अखण्ड रहो!" यह कहते हुए मूर्ति का सारा अनकहा आंसुओं में तब्दील हो गया।

"एकता के लिए शांति...और शांति के लिए भ्रांतियों को दूर करना होगा महामहिम! आपको या आप जैसों को देश की धरती पर फिर से जन्म लेना होगा! कोई नहीं वहां आप लोगों जैसा!" यह कहकर वह कबूतर उस भव्य मूर्ति का माथा चूम कर पुनः वही 'वैश्विक-प्रार्थनाा' गाता हुआ स्वदेश-भ्रमण हेतु उड़ पड़ा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 7, 2018 at 8:36pm

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर उपस्थित होकर रचना के अनुमोदन और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब, जनाब विजय निकोरे साहिब  और मुहतरमा  महिमा श्री साहिबा।

Comment by MAHIMA SHREE on November 4, 2018 at 4:31pm

बहुत सुंदर लिखा आपने। बधाई

Comment by vijay nikore on November 4, 2018 at 3:56pm

//"एकता के लिए शांति...और शांति के लिए भ्रांतियों को दूर करना होगा//..... मुझको यह ख्याल बहुत ही सही और अच्छा लगा। लघु कथा सारी अच्छी लगी, भाई शैख़ जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 1, 2018 at 4:35pm

आ. भाई शैख शहजाद जी, अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on November 1, 2018 at 3:11pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
15 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service