For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'तू मेरा क्या लागे?' (लघुकथा)

"देख, अब भी समय है! संभाल ले, अनुशासित कर ले अपने आप को!"
"अपनी थ्योरी अपने ही पास रख! ... देख, रुक जा! ठहर जा! रोक ले समय को भी! उसे और तुझे मेरे हिसाब से ही चलना होगा!"
"तो तू मुझे अपनी मनचाही दिशा में धकेलेगा! अपनी मनचाही दशा बनायेगा! 'देश' और 'काल' की गाड़ी की मनचाही 'स्टीअरिंग' करेगा!
"बिल्कुल! ड्राइवर, कंडक्टर, सब कुछ मैं ही हूं और हम में से ही हैं हमारे देश की गाड़ी चलाने वाले! तुम.. और समय .. तुम दोनों तो बस क़िताबी हो; बड़ी ज़िल्द वाली बड़ी-बड़ी क़िताबों में रहकर बड़ी-बड़ी बातें करने व करवाने वाले, बक-बक और टिक-टिक करते रहने वाले; बिकने, बेचने वाले, बस!"
"क्या बकते हो? तुम्हारी और तुम्हारे द्वारा बनाए गए लोकतंत्र की गाड़ी, तुम्हारे प्रतिनिधियों द्वारा बनवाए गए विधि-संविधान द्वारा ही चलती है न! फ़िर तुम उनका उल्लंघन और अवहेलना कर क्यों इतराते हो?" इस बार सटीक शब्दों में समझाते हुए 'क़ानून' ने उस कुतर्क कर रहे देश के 'आम नागरिक' से कहा। लेकिन वह चुप न रह सका। बोला :

"इतरा नहीं रहा हूं! अपनी ताक़त से समय अनुसार तुम्हें रोक रहा हूं या बदल रहा हूं! हम तुम्हारे हिसाब से नहीं, तुम्हें हमारे हिसाब से, हमारे धर्म के हिसाब से, हमारे नेतृत्वकर्ता के हिसाब से चलना होगा या बदलना होगा!"
"...'समय', समय है और 'मैं', मैं हूं! न तुम समय को रोक सकते हो, न ही मुझे! न ही हमें तुम किसी मनचाही दिशा में धकेल सकते हो! समझे!"
"अंधे हो, अंधे! दिखता नहीं तुम्हें कि देश में क्या चल रहा है; क्या-क्या करवाया और चलवाया जा रहा है! बिल्कुल सही कहा गया है तुम्हें .. 'अंधा क़ानून'!"
"नहीं, नहीं! यह तो तुम्हारा जुनून है! वक़्त और लोकतंत्र का ख़ून सवार है तुम और तुम जैसों पर!"
"बहुत हो गया! बहुत सह ली वक़्त और कायदे-क़ानूनों की मार! अरे, लगते क्या हो अब तुम हमारे!"
"ये 'तुम' कह रहे हो? अरे, बड़बोले! बेपेंदी के लोटे! ये हालात तुमने ही बनाए हैं! अब तुम पहले जैसे न तो नागरिक रहे, न ही मतदाता और न ही देशभक्त! ... ख़ैर, समय ही तुम्हें सही दिशा और दशा की ओर धकेलेगा! समय रहते जाग जाओ; संभलो और संभालो अपने अद्वितीय वतन और लोकतंत्र को, समझे!" देश के 'क़ानून' के ये शब्द गुंजायमान हो उठे और आम 'नागरिक' न चाहकर भी अपने कानों पर हाथ रख शर्मिंदगी सी महसूस करता रह गया।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2018 at 4:15am

आदाब। मेरी इस रचना पर समय देकर अनुमोदन और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा।

Comment by Neelam Upadhyaya on November 5, 2018 at 12:37pm

आदरणीय शेख शेह्ज़ाद उस्मानी जी, आजकल कल के हालात पर कटाक्ष करती बहुत ही बढ़िया लघुकथा।  हार्दिक बधाई।  |

Comment by Mohammed Arif on November 4, 2018 at 8:01am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                           'क़ानून 'और 'आम नागरिक' को केंद्र में रखकर मानवीकरण शैली में लिखी गई बहुत ही कटाक्षपूर्ण लघुकथा । हालाँकि कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on November 3, 2018 at 5:13pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 3, 2018 at 12:21pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन लघुकथा।वर्तमान हालात पर तगड़ा तंज और कटाक्ष करती रचना।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
19 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
yesterday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service