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"जब ओज़ोन परत में छेद हो सकता है; ब्रह्मांड में ब्लैक होल हो सकते हैं! तो जबरन बनायी और थोपी गई मच्छरदानी में हम छेद कर, सेंध लगाकर फिर से इन सब का ख़ून क्यों नहीं चूस सकते, मित्रों!"


"बिल्कुल साहिब! नींद के शौक़ीन इन आरामपसंद नागरिकों ने हर तरह से तुष्टिकरण करवा के देख लिया! अब तो इनकी खटमलविहीन हाइटेक आरामगाह में हमें भी खटमल-नीतियों से सेंधमारी करनी चाहिए या बिच्छू-डंक-प्रहार-शैली से!"


"नहीं मित्रो, न तो हमें खटमल माफ़िक बनना है और न ही बिच्छू जैसा! इनके पास और भी ख़तरनाक नीतियां और युक्तियां हैं हमें हराने और भगाने के लिए। हमें रैलियों और सामूहिक-उड़ानों से इस आकस्मिक या नैमित्तिक मच्छरदानी व्यवस्था में छिद्र-अभियान अविलंब छेड़ देना चाहिए!"


"बिल्कुल साहिब! तभी इन मच्छरदानी निर्माताओं-उपभोक्ताओं को समूल समाप्त किया जा सकता है! मरने दो, जितने भी मर सकते हों! जनसंख्या क़ानून के बजाय 'हम मच्छरों' के प्रकोप से इन्हें बारी-बारी मारना होगा या बीमार करते रहना होगा। जो हमारे हित की बात करेगा, उसे ही हम छोड़ेंगे!"


मच्छरदानी के अंदर-बाहर रासायनिक, वैद्युत, इलैक्ट्रोनिक आदि तमाम युक्तियों से घिरे होने के बावजूद सभी मच्छर अपने बॉस की रणनीति के तहत मच्छरदानी को भेदने और ज़ख्मी कर निकम्मा करने में जुट गये; विदेशी तकनीकों के सेवन से उनकी बाधा-प्रतिरोधक क्षमताओं की तरक़्क़ी जो हो चुकी थी!


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 2, 2019 at 8:54pm

आदाब। मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देने वाले सभी सुधीजन को तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया। नये साल की बहुत-बहुत मुबारकबाद और शुभकामनाएं।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 30, 2018 at 6:52pm

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर  साहिब, जनाब विजय निकोरे साहिब और मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा।

Comment by vijay nikore on October 30, 2018 at 10:19am

सदैव आनन्द आ जाता है आपकी पोस्ट पर आकर। लघुकथा अच्छी लगी। हार्दिक बधाई जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।

Comment by Neelam Upadhyaya on October 30, 2018 at 9:59am

आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी, नमस्कार।  अच्छी लघुकथा हुई है. प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on October 29, 2018 at 5:08pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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