For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...ले ली मेरी जान सलीके से-बृजेश कुमार 'ब्रज'

वो बैठा दिल में आन सलीके से
फिर ले ली मेरी जान सलीके से

यूँ ही पहले थोड़ी सी बात हुई
बन बैठे फिर अरमान सलीके से

पल भर को पहलू में आओ चन्दा
इतना तो कर अहसान सलीके से

काफी है पलकों का उठना गिरना
तू नैन कटारी तान सलीके से

दिल की दुनिया लूट गईं दो आँखें
फिर होती हैं हैरान सलीके से

कोने की उस जर्जर अलमारी में
रख छोड़े कुछ अरमान सलीके से

जिनको थी लाज बचानी कलियों की
बन बैठे वो हैवान सलीके से

नाजों से जिसने पाला 'ब्रज' तुमको
तुम रखना उनका मान सलीके से

क्या खूब ग़ज़ल तुमने कह डाली 'ब्रज'
अब तो वो देगा ध्यान सलीके से
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 940

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 28, 2018 at 9:02pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'जी सादर नमस्कार - अच्छी गजल के लिए बधाई स्वीकार करें 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 28, 2018 at 9:00pm

आदरणीय नीलेश जी आदरणीय समर जी..वाकई में मतले और एक दो शे'र छोड़कर बाकी लय तो नहीं है..मैंने भी कई बार पढ़ा। 10 रुक्न की वजह से लय बाधित है क्या?

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 28, 2018 at 8:55pm

आदरणीय विजय जी सादर धन्यवाद

Comment by Samar kabeer on October 28, 2018 at 2:53pm

लय तो पूरी ग़ज़ल में नहीं है,लय के लिए इसमें मेरे नज़दीक एक "फ़ा" और होना था ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 8:49am

आ. बृजेश जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..लेकिन सच कहूँ तो मुझे कई जगह लय बाधित लगी..
बाकी वरिष्ठजन कहेंगे 
सादर 

Comment by vijay nikore on October 28, 2018 at 1:40am

आपकी गज़ल अच्छी लगी। हार्दिक बधाई मित्र बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 27, 2018 at 7:34pm

आदरणीय समर जी बहुत बहुत शुक्रिया..ये बहुत ही बारीक़ है लेकिन मुझे फिर भी समझना ही होगा।यथोचित सुधार करता हूँ..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 27, 2018 at 7:32pm

हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तिवारी जी..सादर

Comment by Samar kabeer on October 27, 2018 at 11:34am

// पल भर को पहलू में आओ चन्दा
इतना तो कर अहसान सलीके से//

ऊला में 'आओ' को "आजा" करने से ये ऐब निकल सकता है ।

Comment by Ajay Tiwari on October 27, 2018 at 7:25am

आदरणीय बृजेश जी, बहुत ख़ूबसूरती से इसे बह्रे-मुतदारिक मख़्बून मुसक्किन 10 रुक़्नी में बाँधा है आपने. ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service