For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुफ़्त की ऑक्सीजन (लघुकथा)

"नहीं कमली! हम नहीं जायेंगे वहां!" इकलौती बिटिया केमहानगरीय जीवन के दीदार कर लौटी बीवी से उसकी बदली हुई सी बोली में संस्मरण सुन कर हरिया ने कहा - "हमें ऐसा मालूम होता, तो बिटिया को बेटे की तरह न पालता... आठवीं तक ही पढ़ाता! अपना खेत न बेचता! फंस गई न वो दुनिया के झमेले में, हमें यहां अकेले छोड़के!"


बेहद दुखी पति की बातें वह चुपचाप सुनती रही। हरिया ने अपने आंसू पौंछते हुए आगे कहा - "पुरखों ने जो सब कुछ हमें सिखाया था, बिटिया को भी हमने सिखा दिया था। अरे, खेत में हर किसम के सांप, बिच्छू, नेवले, खरगोश और चमगादड़ों जैसों से बिना किसी मदद के अकेले ही हर मौसम में निबट लेते थे हम! लेकिन आदमियों वाले सांप-बिच्छुओं और मकड़ों से बिटिया कैसे ख़ुद को बचा पायेगी? यही सोच-सोच कर परेशान हो रये हैं, कमली!"


"तुम फिकर न करो! ज़िन्दगी जी रई है नये ज़माने जैसी! ख़ूब पैसा कमा रई है! आगे की बड़ी पढ़ाई भी कर लई है! मेटरो तो क्या, बड़े-बड़े हवाई जहाजन में सैर कर लेती है और अपने शौक़ पूरे करके भी हमें भी ढेर सारा पैसा हर महीने भेज देती है! और का चईये?" इतना कहकर कुछ इतरा कर बोली- "तुमई पे गई है! तुम पे भी तो कित्ती छोरियां मरती रहीं ... और तुम भी किस हद तक गये! का हमें नईं मालूम? कुछ कहा हमने तुमसे कभी?"


"तो क्या जवान बिटिया को ऐसई बड़े शहरन की हवा में उड़न दें.. शादी कब करहो ऊकी... मना कर देत है ससुरी हर बार!"... और सुनो.. कोई कह रहा था कि आज पिता दिवस है? बिटिया ने हमसे फोन पे बात तक नहीं करी आज भी!"


"होटलन में अपने बॉस गोड फादर के साथ नये ज़माने की चीज़ें खा रई होगी! घूम रई होगी! आजकल सब करना पड़ता है लिमिट में!" कमली ने हरिया के देसी अधनंगे बदन पर नज़र डालते हुए कहा - "हम जैसे थोड़ी ई गांव में सड़ रही वो! इत्ता बढ़िया मकान बनवा दिया उसने! फिर भी तुम टट्टी करने लौटा लेके ही बाहर जाते हो!"


"तुम का जानो आक्सीजन मिलत है जंगल में मुफत की! पेड़ और आक्सीजन के लाने बड़े शहर वाले तरसत हैं! हम न जायेंगे उन मशीनों के बीच में!" इतना कहकर अपने ठोस बदन से कमली को चिपका कर उसने प्यार से कहा - "हमरी मुफत की आक्सीजन, क्या तुम्हें भी उस बड़े शहर की हवा लग गई ब्यूटी पार्लर जाके! मेट्रो-हवाई जहाजन में घूम-घूम के?"


"हओ, ख़ूब सैर करायी बिटिया ने! हमें सब जगा ले गई! अपने साहब लोगन को फ्लैट में बुलवाकर हमें मिलवाया भी!"


"तभईं कछु बदली-बदली सी लग रई हो! कौनऊं मुफत की आक्सी्जन चड़वा लई या बोतल कौनऊं?"


"काहे को मज़ाक करत हो? हम तो ठहरे देसी सीरत के! बिटिया आज की मोड़ी है! जी लेने दो बड़े शहरन की ज़िंदगी! न जंची तो ख़ुद ही आ जैहे यहां की खुली हवा में सांस लेवे!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 788

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 3, 2018 at 9:30pm

मेरी इस अभ्यास रचना पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई करते हुए अपने विचार सांझा करने हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय : Samar kabeer  साहिब,  Neelam Upadhyaya साहिबा,   Rakshita Singh  साहिबा, vijay nikore  साहिब,  Tasdiq Ahmed Khan साहिब,  तथा जनाब  Mahendra Kumar

साहिब।

Comment by Mahendra Kumar on June 20, 2018 at 6:47pm

बढ़िया लघुकथा है आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 19, 2018 at 6:44pm

जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब, ज़बर्दस्त और उम्दा la

लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |

Comment by vijay nikore on June 19, 2018 at 5:10pm

 अच्छी लघुकथाएँ आप में समाई हैं।हार्दिक बधाई।

Comment by रक्षिता सिंह on June 19, 2018 at 7:27am

आदरणीय उस्मानी जी नमस्कार,

ग्रामीण भाषा से सुसज्जित बहुत ही  सुन्दर लघुकथा ...

 हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Neelam Upadhyaya on June 18, 2018 at 3:43pm

आदरणीय उसमानी जी, नमस्कार । अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on June 18, 2018 at 2:21pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
21 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service