For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समाधान: लघुकथा :हरि प्रकाश दुबे

राहुल ने जैसे ही रात को घर में कदम रखा वैसे ही उसका सामना अपनी धर्मपत्नी ‘कविता’ से हो गया । उसे देखते ही वह बोली “देख रही हूं आजकल, तुम बहुत बदल गए हो, मुझसे आजकल ठीक से बात भी नहीं करते हो ।”

 

नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, बस जरा काम का बोझ कुछ ज्यादा ही लग रहा है ।”

 

ये बहाना तो तुम कई दिनों से बना रहे हो, हाय राम ! कहीं तुम मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे हो, “कौन है वो करमजली?”

 

यह सुनते ही राहुल का पारा चढ़ गया उसने झुंझुलाते हुए कहा “कविता, तुम ये बकवास बंद करो और ये टेसुए बहाना भी, कहा ना ! बस किसी वजह से परेशान हूँ ।”

 

राहुल का मिज़ाज गर्म होता देख वह प्यार से बोली, अरे गुस्सा क्यों होते हो, मैं हूँ ना, तुम बताओ तो सही समस्या क्या है, शायद मैं तुम्हारी परेशानी दूर कर सकूँ, बताओ ना राहुल ।

 

अब राहुल ने कहा ! तो लो सुनो – “कस्टम में शिपमेंट अटक गयी है, एक तो बाजार में कोई नया खरीदार नहीं है, ऊपर से दिया गया उधार भी वापस नहीं आ रहा है, एक तो अकाउंटेंट भी रोज़ गोली दे रहा है साला... ऑफिस ही नहीं आ रहा है, ऊपर से टीडीएस रिटर्न, सम्पति कर , आयकर, जीएसटी रिटर्न सब फाइल करना है, सीलींग का लफड़ा और फंस गया है, अब दो मुझे समाधान की क्या करूँ?”

 

अचानक एक लम्बे सन्नाटे के बाद कविता बड़े प्यार से बोली – “सुनिए आपकी वो बोतल जो मैंने छुपा के रख दी थी ले आती हूँ, केवल दो ही पेग मारना हाँ, और अब तो वैसे नवरात्रे भी समाप्त हो गए हैं । इतना कहकर वो चुपचाप किचन की तरफ बढ़ गयी ।

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

© हरि प्रकाश दुबे   

Views: 901

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on March 28, 2018 at 8:31pm
BHAI G
IS RCHNA KA EK VERSION WHATSAPP PER 4 DIN PHLE PDHA THA.KYA VO RCHNA AAP NE HI CIRCULATE KI HAI YA YE RCHNA US SE PRBHAVIT HAI.RCHNA THIK THIK HAI SHAYD BEHTR BNAYA JA SKTA THA.
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 28, 2018 at 7:34pm

अधिकतर पुरुषों और विवाहित/ शिक्षित युवाओं के साथ इसी तरह का तनाव रहता है,जिसका असर पूरे परिवार पर पड़ता व दिखाई देता है। अच्छा विषय लिया है आपने। रचना भी प्रवाहमय भावपूर्ण है। अंत भी एक कड़वा यथार्थ व सच है कुछ परिवारों के संदर्भ में। हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी। किंतु लघुकथा संदर्भ में अंत बहुत ही नकारात्मक और नाटकीय सा हो गया है, जिसकी अनुमति यह विधा नहीं देती। समस्या व निदान सुझाते हुए कटाक्ष किया जाना चाहिए। समाज को क्या सकारात्मक संदेश दिया है इस रचना ने?

दरअसल आपकी बढ़िया लेखनी कहीं भी ग़लत नहीं है। उसे जो सच कहना था, उसने कह दिया है। लेकिन यह पहला रूप है। अब दूसरे और तीसरे रूप में क्यों न यही पूरा सच कहते हुए भी समाज के लिए सकारात्मक संदेश/चिंतन मनन पर रचना का कटाक्षपूर्ण समापन करने की कोशिश की जाये! हार्दिक शुभकामनाएं। सादर।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 28, 2018 at 2:32pm

लघुकथा क्या कहना चाह रही है समझ नहीं आई| सादर|

Comment by Samar kabeer on March 28, 2018 at 12:23pm

जनाब हरिप्रकाश दुबे जी आदाब,प्रयासरत रहें,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on March 28, 2018 at 10:44am

आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,

                                   आप इस लघुकथा के माध्यम से आख़िर क्या कहना चाहते हैं । आपसे बहुत बेहतर की उम्मीद है । आशा है आप आगामी लघुकथा बहुत ही उम्दा लेकर आएँगे जिसके लिए अग्रिम बधाई ।

Comment by नाथ सोनांचली on March 28, 2018 at 4:34am

आद0 हरि प्रकाश दुबे जी सादर अभिवादन। ऊपर से जब लघुकथा पढ़ना प्रारम्भ किया तो मुझे इस लघुकथा में उत्सुकता बढ़ती गयी पर जिस तरह से पैग देकर समाधान का तरीका बताया गया, एक पाठक की बात करूं तो मुझे निराशा हुई। हो सकता है मैं गलत हूँ। सादर। बहरहाल आपकी प्रस्तुति पर बधाई। सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 27, 2018 at 9:35pm

 

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी, सबसे पहले तो रचना पर आपकी उपस्तिथि और आपकी बेबाक राय के लिए आभार,अब इसे दुसरे व्यंगात्मक दृष्टिकोण से देखिये की एक गृहणी जिसे व्यापार की समझ नहीं है और वह समाधान देने की कोशिश कर रही है पर समस्याओं को सुनते ही उसे समझ ही नहीं आता की क्या करे तो वह पिंड छुडाकर अपने काम में लगना  ही ठीक समझती है, मतलब जिसका काम उसी को साजे J ! सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2018 at 9:16pm

आ. हरिप्रकाश जी ,

यानी नशे में मस्त रहो और मूल समस्या भूल जाओ??
मुझे लघुकथा की   कतई समझ नहीं है   और ये वाली तो बिलकुल ही समझ नहीं आयी..
न कोई सीख है न समाधान ... 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
13 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
13 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service