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वज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है - सलीम रज़ा

212 1222 212 1222
बज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है
महकी सी फ़ज़ाएँ हैं कौन आने वाला है
-
चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है
मेरे घर के आँगन में सुरमई उजाला है
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इतनी सी गुज़ारिश है नींद अब तू जल्दी आ 
आज मेरे सपने में यार आने वाला है
-
जागना वो रातों को भूक प्यास दुख सहना
माँ ने अपने बच्चों को मुश्किलों से पाला है
-
उसके दस्त-ए-क़ुदरत में ही निज़ाम-ए-दुनिया है
इस जहान-ए-फ़ानी को जो बनाने वाला है
-
मुफ़लिसी से रिश्ता है ग़म से दोस्ती अपनी
मुश्किलों को भी हमने दिल मे अपने पाला है
-
उसकी शोख़ नज़रों का ये कमाल है देखो  
ज़िंदगी में अब मेरी हर तरफ उजाला है
-
भूल वो गया मुझको ग़म नहीं रज़ा लेकिन
उसकी याद को दिल में अब तलक सँभाला है
-
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by SALIM RAZA REWA on January 9, 2018 at 12:29pm
जनाब समर साहब,
आपके मशविरे के मुताबिक़ टंकण गलती ठीक कर दी गई है, आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 9, 2018 at 12:25pm
बृजेश भाई,
ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए शुक्रिया.
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 9, 2018 at 12:42am

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय सलीम जी..मलते से लेकर सभी शेर खूबसूरत हुए..सादर

Comment by Samar kabeer on January 8, 2018 at 5:55pm

मतले के ऊला में 'वज़्म' टंकण त्रुटि ।

हुस्ने मतला में 'कला' टंकण त्रुटि ।

4थे शैर में 'मुश्किलों' में 'क' के नीचे बिंदी,टंकण त्रुटि ।

छटे शैर में भी यही ग़लती ।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 8, 2018 at 5:41pm
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी,
ग़ज़ल को अपनी मुहब्बत से नवाज़ने के लिए शुक्रिया..
Comment by SALIM RAZA REWA on January 8, 2018 at 5:40pm
आ. काली प्रसाद जी,
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत के लिए शुक्रिया... आपको टंकण त्रुटि कहाँ लगती है बताएँ तो बात बने.... हमें तो नहीं दिख रही है
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2018 at 12:38pm

आ. भाई सलीम जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 8, 2018 at 11:04am

आदरणीय सलीम रज़ा साहिब आदाब " बही उम्दा ग़ज़ल |गुणी जन उस पर बता चुके है | मुझे "चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला कला है " में टंकण त्रुटी लगती है ... 'काला काला'  तो ठीक  \\आदाब 

Comment by SALIM RAZA REWA on January 7, 2018 at 9:05am
जनाब समर साहब,
आपके मुताबिक़ कुछ ताब्दीली की गई है ग़ौर फरमाएं.
Comment by Samar kabeer on January 6, 2018 at 12:18pm

आपकी जिद्दत आपको मुबारक हो ।

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