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गुज़र रहा हूँ उसी डगर से

121 22 121 22

है  आई खुश्बू तेरी जिधर से ।

गुज़र रहा हूँ उसी डगर से ।।

नशे का आलम न पूछ मुझसे ।

मैं पी रहा  हूँ तेरी  नज़र  से ।।

हयात मेरी भी कर दे रोशन ।

ये इल्तिज़ा है मेरी क़मर से ।।

हजार पलके बिछी हुई हैं ।

गुज़र रहे हैं वो रहगुजर से ।।

खफा हैं वो मुफलिसी से मेरी ।

जो तौलते थे मुझे गुहर से ।।

यूँ तोड़कर तुम वफ़ा के वादे ।

निकल रहे हो मिरे शहर से ।।

उन्हें पता हैं मेरी खताएँ ।

वे राज लेते हैं मोतबर से ।।

न कर तू साजिश न काट उसको ।

मिलेगा साया उसी शजर से ।।

हैं आसुओं को छुपाना मुश्किल ।

निकल पड़े हैं जो चश्मे तर से ।।

बड़ी उम्मीदें थीं आज उससे ।

मिला कहाँ वो  मुझे जिगर   से ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2017 at 12:48pm

सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई आ. भाई नवीन जी ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 20, 2017 at 6:21pm

बहुत प्यारी ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय नवीन जी | हार्दिक बधाई |

Comment by Ajay Tiwari on December 20, 2017 at 2:59pm

आदरणीय नवीन जी, एक खूबसूरत आहंग में खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. 

'तमाम खुश्बू तेरी जिधर से' की जगह 'है आयी खुशबू तेरी जिधर से' भी एक विकल्प हो सकता है.

'जो अश्क़ आये हैं चश्मे तर से' की जगह 'निकल पड़े हैं जो चश्मे तर से' भी एक विकल्प हो सकता है.

'लगा रहे बोलियां जिगर से' को किसी और तरह से कहना बेहतर होगा.

सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 20, 2017 at 1:42pm

आ0 मुहम्मद आरिफ साहब तहे दिल से शुक्रिया । 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 20, 2017 at 1:40pm

आ0 अफरोज सहर साहब ग़ज़ल तक आने के लिए शुक्रिया । मतले को राबिता के साथ पेश किया है जिधर से महबूब की खुशबू आ रही है उसे रास्ते से मैं गुजर रहा हूँ । उर्दू शब्दों में लिंग भेद और उच्चारण को दोष हो सकता है । उसे ठीक करता हूँ । 

Comment by Afroz 'sahr' on December 20, 2017 at 12:54pm
आदरणीय नवीन मणि जी इस रचना पर बहुत बधाई आपको । काफ़ी टंकण त्रुटियाँ हैं । जो ग़ज़लियत को प्रभावित कर रही हैं। मतले का ऊला मिसरा समझ नहीं आया, ग़ज़ल के आख़िरी शेर का सानी मिसरा, "लगा रहे बोलियाँ जिगर से" में तरकीब सही नहीं जान पड़ती,,5वें शेर का ऊला मिसरा "ख़फ़ा हैं वो मुफ़्लिसी से मेरे" में मुफ़्लिसी
स्त्रीलिंग है। इसे यूँ कर सकते हैं
"ख़फ़ा हैं वो मुफ़्लिसी से मेरी" सादर,,,
Comment by Mohammed Arif on December 20, 2017 at 11:10am

आदरणीय नवीनमणि त्रपाठी जी आदाब,

                             छोटी बह्र की बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र मस्त । ग़ज़ल पढ़कर अच्छा लगा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

नोट:- कितना अच्छा हो यदि आप जैसे  ग़ज़लगो  साहित्य की अन्य विधाओं में अपनी सृजनशीलता का परिचय देने वालों को भी अपनी टिप्पणियों से पोषित करें ताकि उनको भी संबल मिलें ।

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