For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बंद किताब ...

ठहरो न !
थोड़ी देर तो रुक जाओ
अभी तो रात की स्याही बाकी है
सहर की दस्तक से घबराते हो
प्यार करते हो
और शरमाते हो
कभी नारी मन के
सागर में उतर के देखो
न जाने कितने गोहर
सीपों में
किसी के लम्स के मुंतज़िर हैं
देहाकर्षण के परे भी
एक आकर्षण होता है
जहां भौतिक सुख के बाद का
एक दर्पण होता है
नशवरता से परे
अनंत में समाहित
अमर समर्पण होता है
पर रहने दो
तुम ये बातें न समझ पाओगे
इक देह बन के आओगे
देह में सिमट जाओगे
आश्वासनों में छुपा
इक दर्द दे जाओगे
अपनत्व के शब्दों में गुंथी
इक बंद किताब दे जाओगे
और मैं
इंतज़ार के अंतिम "वरक़" तक
मर मर के जीती रहूंगी
साँसों के अंतिम छोर तक
तुम में
बैठकर
तुम्हें पढूंगी
तुम्हारे शब्दों में
स्वयं को आत्मसात कर
इक शब्द बन जाऊँगी
सच
कितना अच्छा होगा
तुम्हारे आश्वासनों के साथ बैठी
मैं भी
इक
बंद किताब हो जाऊंगी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 713

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on November 23, 2017 at 12:54pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब , सादर प्रणाम  ... सृजन के भावों को आत्मीय भावों से अलंकृत का हार्दिक आभार। 

Comment by vijay nikore on November 23, 2017 at 11:40am

//तुम में 
बैठकर 
तुम्हें पढूंगी 
तुम्हारे शब्दों में 
स्वयं को आत्मसात कर 
इक शब्द बन जाऊँगी //

वाह ! अति कोमल भाव। इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, भाई सुशील जी।

Comment by Sushil Sarna on November 21, 2017 at 5:29pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब .. सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया एवं सुझावों की हार्दिक आभारी है। भविष्य में इनकी पुरावृति न हो , इसका ध्यान रखने का प्रयास करूंगा। वैसे सर हिंदी में वर्ण के नीचे नुक़्ते (.) का चलन मेरी नज़र में नहीं आया हाँ उर्दू लिपि में ज़रूर है। अब चूंकि मैंने ये प्रस्तुति हिंदी में उर्दू के शब्दों को प्रयोग करते हुए लिखी है इसलिए आपको शायद वर्तनी दोष लगा हो। बहरहाल कोशिश करूंगा कि कम से कम उर्दू शब्दों का सही प्रयोग करूँ। इस गहन समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 21, 2017 at 5:28pm

आदरणीय सलीम साहिब सृजन को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 21, 2017 at 5:28pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन के गहन भावों को सहमति देती आत्मीय प्रशंसा से सृजन सार्थक हुआ। हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 21, 2017 at 5:27pm

आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Mohammed Arif on November 21, 2017 at 12:13pm
आलरणीय सुशील सरना जी आदाब,
बहुत सुंदर अंतर्मन की शाब्दिक अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियों की ओर ध्यान दिलाना चाहूँगा जैसे:-बाकी/बाक़ी,सागर/साग़र, गोहर/गौहर,नशवरता/नश्वरता,रहूंगी/रहूँगी, पढूंगी/पढ़ूँगी,किताब/क़िताब आदि ।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:19am
वाह...
जनाब सुशील सरना साहिब ,बहुत ही आकर्षक और सुन्दर कविता हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
Comment by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 9:45pm
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बहुत गहरी सोच को प्रतिबिंबित करती अतुकांत, पढ़ते पढ़ते भावों में खोने को बरबस खिंचती।बहुत बहुत बधाई इस अतुकांत पर।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 20, 2017 at 9:09pm
जनाब सुशील सरना साहिब ,बहुत ही आकर्षक और सुन्दर कविता हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"वाह क्या माहौल है, क्या ख़ूब चर्चा हो रही है रचनाओं पर। बहुत समय बाद ऐसा माहौल देखा ओ. बी. ओ. पर,…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. गिरिराज जी,ग़ज़ल के अशआर में कसावट कम है. कई जगह वाक्य विन्यास काम-चलाऊ है जो आपके स्तर का कतई…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. सौरभ सर जिस दीये में रौशनी होगी वही फड़फड़ाता भी दिखाई देगा ..//क्योंकि हम छिछली सोच या…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"धन्यवाद आ. दयाराम जी पढने पढने का फ़र्क़ है . अहिल्या का किसी छोड़ कर किसी उद्धार  कहीं से…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"धन्यवाद आ. गिरिराज जी "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीया रिचा जी,  आपकी प्रस्तुति का हार्दिक स्वागत है. आपके अश’आर पर जहाँ जैसी आवश्यकता…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"यही तो रचनाधर्मिता है. न कि मात्र रचनाकर्म.  आपके कहे का स्वागत है. शुभातिशुभ"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय नीलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुति में जान है. परन्तु, इसका फड़फड़ाना भी दीख रहा है हमें. यह मुझे एक…"
10 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय सौरभ भाई, ग़ज़ल पर चर्चा होती हैं तो सामान्यत: अरूज़ के दोष तक सीमित रह जाती हैं। मेरा मानना…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय तिलकराज जी, मंच पर वाद-विवाद या अन्यथा बकवाद से परे एक दूसरे के कहे पर होती सार्थक चर्चा ही…"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"व्याकरण की दृष्टि से कुछ विचार प्रस्तुत हैं। अकेले में घृणित उदगार भी करते रहे जो दुकाने खोल सबसे…"
11 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"अच्छी कहन है अजेय जी, शिल्प और मिसरो में रवानी और बेहतर हो सकती है। गिरह का शेर इस दृष्टि से…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service