For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चांद का टुकड़ा है या कोई परी या हूर है - सलीम रज़ा रीवा

2122 2122 2122 212

चांद  का टुकड़ा है या कोई  परी या हूर है 
उसके चहरे पे चमकता हर घड़ी इक नूर है

-

हुस्न पर तो नाज़ उसको ख़ूब था पहले से ही 
आइने को देख कर वो और भी मग़रूर है

-

हार  कर रुकना नहीं मंज़िल भले ही दूर हो           
ठोकरें  खाकर सम्हलना वक़्त का दस्तूर है

-

हौसले  के  सामने तक़दीर  भी  झुक जायेगी
तू बदल सकता है क़िस्मत किसलिए मजबूर है

-

आदमी की चाह हो तो खिलते है पत्थर में फूल
कौन सी मंज़िल भला इस आदमी  से दूर  है

-

ख़ाक  का है पुतला  इंसाँ  ख़ाक में मिल जाएगा
कैसी दौलत कैसी शुहरत क्यों भला मग़रूर है

-

वक़्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता कभी
वक़्त  के  हाथो  यहाँ  हर  एक शय  मजबूर  है

-

उसकि मर्ज़ी के बिना हिलता नहीं पत्ता कोई 
उसका हर एक फैसला हमको रज़ा मंज़ूर है

-

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 987

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on January 3, 2018 at 7:39pm
आ. भ्रमर जी,
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on November 21, 2017 at 6:25pm

बहुत सुंदर  ग़ज़ल 
भ्रमर ५

Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:58am
जनाब आरिफ साहब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया महब्बत सलामत रहे.
Comment by Mohammed Arif on November 20, 2017 at 8:13am
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब,
उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र लाजवाब । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 19, 2017 at 4:38pm
जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब,
आपकी मुबारक़बाद का तहे दिल से शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 19, 2017 at 4:32pm
आ. बृजेश जी,
ग़ज़ल के तारीफ़ के लिए शुक्रिया,
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 18, 2017 at 9:01pm
पते की बात। बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सलीम रज़ा रीवा साहिब।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 18, 2017 at 3:11pm
बड़ी उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय..बधाई
Comment by SALIM RAZA REWA on November 18, 2017 at 9:50am


आदरणीय अभिनव अरुण जी ,
ग़ज़ल पे आपकी तारीफ़ के लिए शुक्रिया , बहुत दिनों बाद आप की आमद हुई आपको देखकर ख़ुशी हुई '

Comment by SALIM RAZA REWA on November 18, 2017 at 9:45am

जनाब तस्दीक़ साहिब ,
आपकी इनायत के लिए शुक्रिया।
आप सही कह रहे हैं ,,,,,,,,वहां है टाइप नहीं हो पाया , आप का शुक्रिया।

'' ख़ाक  का पुतला है  इंसाँ  ख़ाक में मिल जाएगा ''

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
7 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service