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मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा - सलीम रज़ा रीवा

2122 1122 1122 22 

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मुझसे रूठा है कोई उसको मनाना होगा
भूल कर शिकवे-गिले दिल से लगाना होगा   
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जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले 
उन चराग़ों को हवाओ से बचाना होगा 
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जिसकी ख़ुशबू से महक जाए ये दुनिया सारी
फूल गुलशन में कोई  ऐसा खिलाना होगा
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मैं जहाँ छोड़ के आ जाऊंगा तेरी ख़ातिर 
शर्त ये है कि मेरा साथ निभाना होगा 
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दिल के रिश्तों को अगर प्यार से जोड़ा जाए
एक बंधन में बँधा सारा ज़माना होगा
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कोई प्यारी सी ग़ज़ल कहना अगर चाहो तो 
इश्क़ में डूबे ख़्यालात को लाना होगा
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चाहते हो जो मिटे सब के दिलों से नफ़रत
दुश्मनों को भी रज़ा दोस्त बनाना होगा
-

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 14, 2017 at 8:12am

इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद स्वीकार कीजिये आसलिम रज़ा साहिब |

Comment by Mohammed Arif on November 13, 2017 at 6:45pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहब, बहुत ही प्यारी ग़ज़ल । हर शे'र बेहतरीन तरीक़े से तराशा हुआ । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Samar kabeer on November 13, 2017 at 5:14pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 13, 2017 at 3:39pm

वाह वाह बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल ,,, सभी अशआर एक से बढ़कर एक ,,,बहुत बधाई आपको आदरणीय सलीम रज़ा रीवा जी 

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