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दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं - सलीम रज़ा रीवा : ग़ज़ल

221 2121 1221 212

..

दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं,

मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी ज़िन्दगी नही

..

ये और बात है कि वो मिलते  नहीं मगर,

किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं

..

तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे,

होता  जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं

..

वो क्या गया की रौनके महफ़िल चली गयी,

जल तो रही है शम्अ मगर रोशनी नहीं

..

ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल,

मेरे, सुख़न  का  रंग कोई  काग़ज़ी नहीं

..

मैं  खुद  गुनाहगार  हूँ अपनी  निगाह  में,

उसके ख़ुलूस-ओ-प्यार में कोई कमी नहीं

..

तुझसे रज़ा के शेरों में संदल सी है महक,

मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी शायरी नहीं

...

मौलिक व अप्रकाशित

Gazal by salimrazarewa

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Comment by SALIM RAZA REWA on October 18, 2017 at 12:01pm
जनाब नीलेश नूर जी
आपकी मुहब्बत सलामत रहे..
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:30am

अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ. सलीम साहब 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 18, 2017 at 8:56am
आ. अजय तिवारी जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by Ajay Tiwari on October 18, 2017 at 6:38am

आदरणीय सलीम साहब,

खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.

सादर 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 17, 2017 at 10:28pm
जनाब तस्दीक़ साहब،
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया. आपका मशविरे का तहे दिल से शुक्रिया... यूँ ही करम फरमाते रहे...
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 17, 2017 at 10:09pm
जनाब सलीम साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबाकबाद क़ुबूल फरमाएं । आपके मतले का उला मिसरा मुकेश के एक गाने का मिसरा है जिसे बदल दीजिए ,शेर2 के सानी मिसरे में एब-तनाफुर (उस से ) है,इसे यूँ करलें (ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर--किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं )
Comment by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 9:45pm
आली जनाब समर साहब आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया. तब्दीली की जा रही है..
Comment by Samar kabeer on October 16, 2017 at 9:09pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।
'इससे जहाँ में कोई भी शय क़ीमती नहीं'
'क़ीमती शय'से मुराद यहाँ 'दिल का मुआमला'है तो मशकूक है ।
दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'उनसे'की जगह "उससे"कर लें,शुतरगुर्बा का दोष है ।
पांचवें शैर में 'ख़ूनें' को "ख़ून-ए-"कर लें ।
मक़्ते के ऊला मिसरे में 'तुमसे'की जगह "तुझसे"कर लें,शुतरगुर्बा का दोष है ।
ख़ुश रहो भाई ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 7:01pm
जनाब अफरोज साहब,
आपकी महब्बत के लिए दिली शुक्रिया..
Comment by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 7:00pm
मुहतरमा बन्दना जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, आपकी महब्बत सलामत रहे.

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