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तू गांधी की लाठी ले ले (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"सभ्यता की तरह तुम भी इतिहास और गांधी जैसे महापुरुषों की लाठियों के सहारे को हमारा सहारा मानने की भूल कर रही हो!" नयी पीढ़ी ने अपने देश की संस्कृति से कहा।
"भूल तो तुम कर रही हो, वैश्वीकरण के दौर में बिक रहे मुल्कों , उनके स्वार्थी नेताओं और बिके हुए बुद्धिजीवियों के बयानों और साजिशों में फंसकर!" संस्कृति ने अपने हाथों में थामी हुई लाठी चूमते हुए कहा - मसलन ये देखो, गांधी जी की लाठी! ये लाठी मेरे लिए उनके अनुभवों, विचारों और दर्शन की सुगठित प्रतीक है। किताबों, काग़ज़ों, चरखों, कलैंडरों से, और खादी से गांधी को कोई कितना भी दूर कर दे, लेकिन उनकी दी ये लाठी मुझे संबल देती है! मैं तुम्हें कभी गुमराह नहीं होने दूंगी!"
"ख़ूब सुने हैं ऐसे प्रवचन! हमें पेट पूजा, परिवार चलाने और दुनिया के साथ चलने के लिए ऐसी लाठियों के सहारे की ज़रूरत नहीं, जिन्हें देश की सत्ता और क़ानून भी तोड़ डालती है!" नयी पीढ़ी ने अपने अनुभव आधारित कुतर्क करना शुरू कर दिया- "गांधी अब हमारे लिए प्रासंगिक नहीं हैं! गांधीगिरी तो महज़ मज़ाक़ बन कर रह गई है!"
"प्रासंगिक तो हैं प्रिय! अवसरों को भुनाने मात्र के लिए टोपियां पहन कर अहिंसा, सत्याग्रह, धरने और आंदोलन किए जाते हैं, मात्र सस्ती लोकप्रियता पाने या स्वार्थपूर्ति के लिए; देश और उसके समाज कल्याण के लिए नहीं न! लोगों की मति भ्रष्ट हो गई है!" संस्कृति ने कहा।

"तो मति भ्रष्ट करने वालों को कौन समझाएगा?"

"इन लाठियों का सही उपयोग, सही समय पर... और ये तुम ही कर सकती हो! संस्कृति ने नयी पीढ़ी से आह्वान किया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 14, 2017 at 8:31pm

आ शेख शहजाद उस्मानी जी , आदाब,लघु कथा की जमींन बहुत अच्छी है | लाठी का उपयोग गाँधी जी चलने में सहारा  के रूप किया करते थे | यहाँ भी भ्रष्टों को सुधारने में  सहारा के रूप में उपयोग हो ,दंड के रूप में न हो  तो मेरे विचार से ज्यादा उपयुक्त होगा | सदर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 13, 2017 at 7:12pm

आ. उस्मानी साहब,
यूँ तो मेरा लघुकथा में कोई दखल नहीं है लेकिन गाँधी मुझे आकर्षित करता है ...
आप की  कथा में दो  बातें संज्ञान में  लाना चाहूँगा..
१) कथा के अंत पंच  नहीं है ...
२) लाठी के सही उपयोग से तात्पर्य गाँधीवाद का त्याग ही होगा....
अत: एक सुझाव है ...संसकृति और युवा पीढ़ी का अंतिम संवाद आपस में  पटल दीजिये कि युवा पीढी सही इस्तेमाल की कह रही है ..
और अंत कीजिये कि यह सुनकर बापू की लाठी कराह उठी जैसे किसी वाक्य से 

सादर 

Comment by Mohammed Arif on October 13, 2017 at 5:45pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,चिंता,चिंतन, प्रतीकात्मकता में सबकुछ समाकर आ गया । ज्वलंत विषय पर बेहतरीन लघुकथा के लिए दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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