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ग़ज़ल नूर की-मुझ को कोई ख़रीद ले सस्ता किए बग़ैर

२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२ (अरकान सही क्रम में हैं या नहीं ये मुझे नहीं पता)

मुझ को कोई ख़रीद ले सस्ता किए बग़ैर
रुसवाई यानी हो भी तो रुसवा किए बग़ैर. 
.
रुख्सत किया है ज़ह’न से यादें लपेट कर, 
तन्हा किया है आप ने तन्हा किए बग़ैर.
.
झुकिए अना को छोड़ के गर इल्म चाहिए,
मिलता नहीं सवाब भी सजदा किए बग़ैर.
.
जिस दर पे पूरी होतीं मुरादें तमाम-तर  
हम वाँ से लौट आये तमन्ना किए बग़ैर.
.
मुझ को न हो गुरूर मेरे नूर का कभी  
रौशन ख़ुदाया रखना सितारा किए बग़ैर.
.
देकर ज़ुबान लौटने की बँध न जाते “नूर”
रुख़्सत हुए जहान से वादा किए बग़ैर
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 998

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Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 27, 2017 at 10:38am
वाह दादा वाह उम्दा ग़ज़ल हुई है वाह जिंदाबाद
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2017 at 9:59am
शुक्रिया आ रामबली गुप्ता जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2017 at 9:59am
शुक्रिया आ सुरेंद्र भाई
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2017 at 9:58am
शुक्रिया आ डॉ आशुतोष जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2017 at 9:58am
शुक्रिया आ समर सर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2017 at 9:58am
शुक्रिया आ मोहम्मद आरिफ साहब
Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 12:19am
भाई नीलेश नूर जी बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर
Comment by नाथ सोनांचली on September 26, 2017 at 8:05pm
आद0 निलेश'नूर' भाई जी सादर अभिवादन,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2017 at 6:07pm
रुख्सत किया है ज़ह’न से यादें लपेट कर,
तन्हा किया है आप ने तन्हा किए बग़ैर.आदरणीय भाई नीलेश जी इस शानदार ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेस रूप से बधाई सादर
Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 5:53pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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